छीजता जाता है फूलों से पराग भीतर का आलोक ढंक लेता सात आसमान कम होती जाती दुनिया में भरोसे की जगह उदारता एकाएक आंधी के वेग से चली आती घर के अंदर रहने खेल-खेल में टूटते चले गए बचपन के खिलौने से ज्यादा बड़ी नहीं रहती भूल-गलतियां कुम्हलाया हुआ दिन हर रोज दरवाजे पर आकर… Continue reading वृद्ध होना / यतीन्द्र मिश्र
सूर्य-वसंत / यतीन्द्र मिश्र
सूर्य अगर फूल होता फिर पंखुड़ी होती आग इस तरह हर फूल का होता प्रकाश और हर प्रकाश का अपना रंग ऐसे में जब-जब जीवन में आता वसंत हमें लगता ढेरों सूर्य खिले हैं रंग भरे और नाउम्मीदी की दिशा भी उम्मीद की आग से धधक उठी है एकबारगी।
सन्मति / यतीन्द्र मिश्र
क्या फ़र्क पड़ता है इससे अयोध्या में पद की जगह कोई सबद गाए दूर ननकाना साहब में कोई मतवाला जपुजी छोड़ कव्वाली ले कर जाए फ़र्क तो इस बात से भी नहीं पड़ता हम बाला और मरदाना से पूछ सकें नानक के बोलों पर गुलतराशी करने वाले इकतारा थामे उन दोनों के हाथ अकसर सुर… Continue reading सन्मति / यतीन्द्र मिश्र
किसकी आवाज़ कान में आई / यगाना चंगेज़ी
किसकी आवाज़ कान में आई दूर की बात ध्यान में आयी आप आते रहे बुलाते रहे आने वाली एक आन में आयी यह किनारा चला कि नाव चली कहिये क्या बात ध्यान में आयी! इल्म क्या इल्म की हकीक़त क्या जैसी जिसके गुमान में आयी आँख नीचे हुई अरे यह क्या यूं गरज़ दरम्यान में… Continue reading किसकी आवाज़ कान में आई / यगाना चंगेज़ी
शे’र / यगाना चंगेज़ी
फिरते हैं भेस में हसीनों के। कैसे-कैसे डकैत थांग-की-थांग॥ आह! यह बन्दये-ग़रीब आपसे लौ लगाये क्यों? आ न सके जो वक़्त पर, वक़्त पै याद आये क्यों?? दीद की इल्तजा करूँ? तिश्ना ही क्यों न जान दूँ? परदयेनाज़ खुद उठे, दस्ते-दुआ उठायें क्यों?? बदल न जाय ज़माने के साथ नीयत भी। सुना तो होगा जवानी… Continue reading शे’र / यगाना चंगेज़ी
असमंजस / त्रिलोचन
मेरे ओ, आज मैं ने अपने हृदय से यह पूछा था क्या मैं तुम्हें प्यार करती हूँ प्रश्न ही विचित्र था हृदय को जाने कैसा लगा, उस ने भी पूछा भई, प्यार किसे कहते हैं बातों में उलझने से तत्त्व कहाँ मिलता है मैं ने भरोसा दिया मुझ पर विश्वास करो बात नहीं फूटेगी बस… Continue reading असमंजस / त्रिलोचन
कर्म की भाषा / त्रिलोचन
रात ढली, ढुलका बिछौने पर, प्रश्न किसी ने किया, तू ने काम क्या किया नींद पास आ गई थी देखा कोई और है लौट गई मैं ने कहा, भाई, तुम कौन हो. आओ। बैठो। सुनो। विजन में जैसे व्यर्थ किसी को पुकारा हो, ध्वनि उठी, गगन में डूब गई मैंने व्यर्थ आशा की, व्यर्थ ही… Continue reading कर्म की भाषा / त्रिलोचन
जागरण / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
उठो सुबह सूरज से पहले, नित्य कर्म से निवृत हो लो। नित्य नहाओ ठण्डे जल से, पढ़ने बैठो, पुस्तक खोलो॥ करो नाश्ता,कपड़े बदलो, सही समय जाओ स्कूल। करो पढ़ाई खूब लगा मन, इसमें करो न बिल्कुल भूल॥ खेलो खेल शाम को प्रति दिन तन और मन होंगे बलवान। ठीक समय से खाना खाओ, फिर से… Continue reading जागरण / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
ऐसा वर दो / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
भगवन् हमको ऐसा वर दो। जग के सारे सद्गुण भर दो॥ हम फूलों जैसे मुस्कायें, सब पर प्रेम सुगंध लुटायें, हम परहित कर खुशी मनायें, ऐसे भाव हृदय में भर दो। भगवन् हमको ऐसा वर दो॥ दीपक बनें, लड़े हम तम से, ज्योर्तिमय हो यह जग हम से, कभी न हम घबरायें गम से,… Continue reading ऐसा वर दो / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
पयामे-सुलह / त्रिलोकचन्द महरूम
लाई पैग़ाम मौजे-बादे-बहार कि हुई ख़त्म शोरिशे – कश्मीर दिल हुए शाद अम्न केशों के है यह गांधी के ख़्वाब की ताबीर सुलहजोई में अम्नकोशी में काश होती न इस क़दर ताख़ीर ताकि होता न इस इस क़दर नुक़्साँ और होती न दहर में तश्हीर बच गये होते नौजवां कितने जिनको मरवा दिया बसर्फे-कसीर ज़िक्र… Continue reading पयामे-सुलह / त्रिलोकचन्द महरूम