असमंजस / त्रिलोचन

मेरे ओ, आज मैं ने अपने हृदय से यह पूछा था क्या मैं तुम्हें प्यार करती हूँ प्रश्न ही विचित्र था हृदय को जाने कैसा लगा, उस ने भी पूछा भई, प्यार किसे कहते हैं बातों में उलझने से तत्त्व कहाँ मिलता है मैं ने भरोसा दिया मुझ पर विश्वास करो बात नहीं फूटेगी बस… Continue reading असमंजस / त्रिलोचन

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कर्म की भाषा / त्रिलोचन

रात ढली, ढुलका बिछौने पर, प्रश्न किसी ने किया, तू ने काम क्या किया नींद पास आ गई थी देखा कोई और है लौट गई मैं ने कहा, भाई, तुम कौन हो. आओ। बैठो। सुनो। विजन में जैसे व्यर्थ किसी को पुकारा हो, ध्वनि उठी, गगन में डूब गई मैंने व्यर्थ आशा की, व्यर्थ ही… Continue reading कर्म की भाषा / त्रिलोचन

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