नृत्य / रामनरेश त्रिपाठी

नाचती है भूमि नाचते हैं रवि राकापति नाचते हैं तारागण धूमकेतु धाराधर। नाचता है मन, नाचते हैं अणु परमाणु नाचता है काल बन ब्रह्मा, विष्णु और हर॥ नाचता समीर अविराम गति से है सदा नाचती है ऋतुएँ अनेक रूप रंग कर। नाचता है जीव नाना देह धर बार बार देखता है नृत्य, वह कौन है… Continue reading नृत्य / रामनरेश त्रिपाठी

आकांक्षा / रामनरेश त्रिपाठी

होते हम हृदय किसी के विरहाकुल जो, होते हम आँसू किसी प्रेमी के नयन के। पूरे पतझड़ में बसंत की बयार होते, होते हम जो कहीं मनोरथ सुजन के॥ दुख-दलियों में हम आशा कि किरन होते, होते पछतावा अविवेकियों के मन के। मानते विधाता का बड़ा ही उपकार हम, होते गाँठ के धन कहीं जो… Continue reading आकांक्षा / रामनरेश त्रिपाठी

कहानी / रामनरेश त्रिपाठी

आँख मूँदिए तो निज घर की मिलेगी राह आँख खोलते ही जग स्वप्न है विरह का। मन खोइए तो कुछ पाइए अनोखा धन हानि में है लाभ यह अजब तरह का॥ आँख लगते ही फिर आँख लगती ही नहीं सुख है विचित्र इस घर के कलह का। काल की कही हुई कहानी है जगत यह… Continue reading कहानी / रामनरेश त्रिपाठी

चितवन का जादू / रामनरेश त्रिपाठी

आँख लगती है तब आँख लगती ही नहीं प्यास रहती है लगी सजल नयन में। मन लगता ही नहीं वन में भवन में न, सुंदर सुमन से सजाए उपवन में॥ रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में, न गान में न मान में न ध्यान में न धन में। चित्र में खचित-सा अचेत… Continue reading चितवन का जादू / रामनरेश त्रिपाठी

आँखों का आकर्षण / रामनरेश त्रिपाठी

अपने दिन रात हुए उनके क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ। सुलगी अनुराग की आग वहाँ जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥ किससे कहिए अपनी सुधि को मन है न यहाँ तन है न वहाँ। अब आँख नहीं लगती पल भी जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥

स्मृति / रामनरेश त्रिपाठी

सोइ श्याम जल आज उज्ज्वल करत मन, सोई कूल सोइ जमुना की मंदगति है। सोइ बन-भूमि सोइ सुंदर करील-कुंज, वैसियै पवन आनि उर मैं लगति है॥ श्याम को सदन बृंदाबन को विलोकि आज, आँखिन में जोति कछु औरइ जगति है। यहीं कहूँ कान्ह काहू भेस में लखत ह्वै हैं, भुज भरि भेंटिबे को छाती उमगति… Continue reading स्मृति / रामनरेश त्रिपाठी

श्याम की शोभा / रामनरेश त्रिपाठी

श्याम के है अंग में तरंगित अनंत द्युति, नित नित नूतन अकथनीय बात है। नीलमनि कहना तो चित्त की कठोरता है, भूले रजनी को तो कहे कि जलजात है॥ दृग से अधर तक दृष्टि न पहुँच पाती, दृग में उधर आती नई करामात है। जैसे जैसे ध्यान से हैं देखते समीप जाके बार बार देखी… Continue reading श्याम की शोभा / रामनरेश त्रिपाठी

रहस्य / रामनरेश त्रिपाठी

वह कौन सी है छवि खोजता जिसे है रवि, प्रतिदिन भेज दल अमित किरन का। वह कौन-सा है गान जिससे लगाए कान गिरि चुपचाप खड़े ज्ञान भूल तन का॥ कौन-सा सँदेशा पौन कहता प्रसून से है खिल उठता है मुख जिससे सुमन का। कौन-से रसिक को रिझाती है सुना के गान कौन जानता है भेद… Continue reading रहस्य / रामनरेश त्रिपाठी

पुष्प-विकास / रामनरेश त्रिपाठी

एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें देख फूल उठे हाथ पाँव उपवन के। खोल खोल द्वार फूल घर से निकल आए, देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥ वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उड़ी पाई न, लजा के रही बाहर भवन के। मारे अचरज के खुले थे तो खुले ही रहे, तब से… Continue reading पुष्प-विकास / रामनरेश त्रिपाठी

ज्ञान का दंड / रामनरेश त्रिपाठी

(१) सावन के श्यामघन शोभित गगन में धरा में हरे कानन विमुग्ध करते हैं मन। बकुल कदंब की सुगंध से सना समीर पूरब से आकर प्रमत्त करता है तन॥ पर दूसरे ही छन आकर कहीं से, घूम जाते हैं नयन में अकिंचन किसान गन। सारे सुख साज बन जाते हैं विषाद रूप, ज्ञानी को है… Continue reading ज्ञान का दंड / रामनरेश त्रिपाठी