आकांक्षा / रामनरेश त्रिपाठी

होते हम हृदय किसी के विरहाकुल जो,
होते हम आँसू किसी प्रेमी के नयन के।
पूरे पतझड़ में बसंत की बयार होते,
होते हम जो कहीं मनोरथ सुजन के॥
दुख-दलियों में हम आशा कि किरन होते,
होते पछतावा अविवेकियों के मन के।
मानते विधाता का बड़ा ही उपकार हम,
होते गाँठ के धन कहीं जो दीन जन के॥

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