प्रियतम / रामनरेश त्रिपाठी

सोकर तूने रात गँवाई। आकर रात लौट गए प्रियतम तू थी नींद भरी अलसाई। रहकर निपट निकट जीवन भर प्रियतम को पहचान न पाई। यौवन के दिन व्यर्थ बिताए प्रियतम की न कभी सुध आई। कभी न प्रियतम से हँस बोली कभी न मन से सेज बिछाई। आज साज सज सजनी कर तू प्रियतम की… Continue reading प्रियतम / रामनरेश त्रिपाठी

हैट के गुण / रामनरेश त्रिपाठी

दृग को दिमाग को ललाट को श्रवण को भी धूप से बचाती अति सुख पहुँचाती है। बीट से बचाती मारपीट से बचाती यह अपढ़ देहातियों में भय उपजाती है॥ पर इसमें है उपयोगिता विचित्र एक योरप-निवासियों की बुद्धि में जो आती है। सिर पर हैट रख चाहे जो अनर्थ करो, हैट यह ईश्वर की दृष्टि… Continue reading हैट के गुण / रामनरेश त्रिपाठी

महापुरुष / रामनरेश त्रिपाठी

(१) बदन प्रफुल्ल दया धर्म में प्रवत्त मन मधुर विनीत वाणी मख से सुनाते हैं। प्रेमी देश जाति के अनिंदक अमानी सदा, हेर हेर बिछुड़े जनों को अपनाते हैं॥ पर-सुख देख जो न होते हैं मलिन चित्त, दीन बलहीन को सहाय पहुँचाते हैं। ऐसे नर-रत्न विश्व-भूषण उदार धीर, ईश्वर के प्यारे महापुरुष कहाते हैं। (२)… Continue reading महापुरुष / रामनरेश त्रिपाठी

मारवाड़ी / रामनरेश त्रिपाठी

(१) बुद्धि पगड़ी सी बड़ी टीबो सा अनंत धन, कोमलता भूमि सी स्वभाव बीच भरिए। देशी कारबार में चिपकिए भरूँट ऐसा, ऊँट ऐसी हिम्मत सहन-शक्ति धरिए॥ दम्पति में प्रीति-रीति रखिए कबूतर सी, मोर की सी छवि निज कीरति की करिए। मारवाड़ी भाइयों! मतीरे के समान आप ताप परिताप निज भारत का हरिए॥ (२) थोड़े में… Continue reading मारवाड़ी / रामनरेश त्रिपाठी

मनुष्य-पशु / रामनरेश त्रिपाठी

बक सा छली है कोई, गाय सा सरल कोई, चूहे सा चतुर कोई, मूढ़ कोई खर सा। काक सा कुटिल मधु-मक्खी सा कृपण कोई, मोर सा गुमानी कोई लोभी मधुकर सा॥ श्वान सा खुशामदी कबूतर सा प्रेमी कोई, स्यार सा है भीरु कोई वीर है बबर सा। कैसा है विचित्र यह मानव-समाज, कोई तेज तितली… Continue reading मनुष्य-पशु / रामनरेश त्रिपाठी

विरहिणी / रामनरेश त्रिपाठी

बह री बयार प्राणनाथ को परस कर, लग के हिए से कर विरह-दवागि बंद। जाओ बरसाओ घन मेरी आँसुओं के बूँद आँगने में प्रीतम के मेरी हो तपन मंद॥ मेरे प्राणप्यारे परदेश को पधारे, सुख सारे हुए न्यारे पड़े प्राण पै दुखों के फंद। जा री दीठ मिल प्राणनाथ की नजर से तू, उदित हुआ… Continue reading विरहिणी / रामनरेश त्रिपाठी

चंद / रामनरेश त्रिपाठी

रति के कपोल सा मनोज के मुकुर सा, उदित देख चंद को हिए में उमड़ा अनंद। मैंने कहा, सोने का सरोज है सुधा के सरवर में प्रफुल्लित अतुल है कला अमंद॥ जानबुल-वश का सपूत एक बोल उठा, लीजिए समझ और कीजिए प्रलाप बंद। पहुँचे अवश्य अँगरेज वहाँ होते यदि जानते कहीं जो वे कि सोना… Continue reading चंद / रामनरेश त्रिपाठी

नारी / रामनरेश त्रिपाठी

अलि अलकावलि, गुलाब गाल, कंज दृग, किंशुक सी नाक, कोकिला सी किलकारी है। पल्लव अधर, कुंद रदन, कपोत ग्रीवा, श्रीफल उरोज, रोम-राजी लता प्यारी है॥ वापी नाभि, कदली जघन, रंग चंपक-सा मृदुता सिरीस सी सुरभि सुखकारी है। ऐसी मनोहारी वृंदावन में निहारी, कौन जाने वह कोई फुलवारी है कि नारी है॥

धनहीन का कुटुम्ब / रामनरेश त्रिपाठी

कौन कौन प्राणी धनहीन के कुटुम्ब में हैं? पिता है अभाग्य और माता अधोगति है। दुख शोक भाई, जो हैं जन्म से श्रवण हीन आँख में न दृष्टि है न पाँव ही में गति है॥ भूख प्यास बहनें, सहोदर को छोड़ जिन्हें दूसरा ठिकाना नहीं पुत्र है न पति है। चिंता नाम कन्या, जो विवाह… Continue reading धनहीन का कुटुम्ब / रामनरेश त्रिपाठी

आशा / रामनरेश त्रिपाठी

जीवन है आशा और मरण निराशा यह आशा की जगत में विचित्र परिभाषा है। आशा-वश भक्ति भाव ध्यान जप योग व्रत आशा-वश जग की समस्त अभिलाषा है॥ आशा-वश घोर अपमान सहके भी नर बोलता विहँस के सुधा सी मृदु भाषा है। आशा-वश जो हैं वे हैं जग के तमाशा आशा जिनको नहीं है उन्हें जग… Continue reading आशा / रामनरेश त्रिपाठी