कनुप्रिया (समापन: समापन)

क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु? लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी! इसी लिए तब मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी, इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया था तुम्हारे गोलोक का कालावधिहीन रास, क्योंकि मुझे फिर आना था! तुमने मुझे पुकारा था न मैं आ गई हूँ कनु। और… Continue reading कनुप्रिया (समापन: समापन)

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2] दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6] साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11] दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में… Continue reading फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ मगर लब पर दुआ है और मैं हूँ न साक़ी है न अब वो शय है बाकी मिरा दौर आ गया है और मैं हूँ उधर दुनिया है और दुनिया के बंदे इधर मेरा ख़ुदा है और मैं हूँ कोई पुरसाँ नहीं पीर-ए-मुगाँ का फ़क़त मेरी वफ़ा है और मैं… Continue reading दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे किसी मुसीबत में जान है प्यारे तू मिरे हाल का ख़याल न कर इस में भी एक शान है प्यारे तल्ख़ कर दी है ज़िंदगी जिस ने कितनी मीठी है ज़बान है प्यारे वक़्त कम है न छेड़ हिज्र की बात ये बड़ी दास्तान है प्यारे जाने क्या कह… Continue reading दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल वगरना किनारे किनारे चला चल इसी चाल से मेरे प्यारे चला चल गुज़रती है जैसे गुज़ारे चला चल तुझे साथ देना है बहरूपियों का नए से नया रूप धारे चला चल ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में किसी नाख़ुदा के सहारे चला चल पहुँच जाएँगे क़ब्र में… Continue reading अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अँधेरा है ये मिरी रात का सवेरा है रह-ज़नों से तो भाग निकला था अब मुझे रह-बरों ने घेरा है आगे आगे चलो तबर वालो अभी जंगल बहुत घनेरा है क़ाफ़िला किस की पैरवी में चले कौन सब से बड़ा लुटेरा है सर पे राही की सरबराही ने क्या सफाई… Continue reading अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने ग़फ़लत ज़रा न की मिरे ग़फ़लत-शेआर ने ओ बे-नसीब दिन के तसव्वुर ये ख़ुश न हो चोला बदल लिया है शब-ए-इंतिज़ार ने अब तक असीर-ए-दाम-ए-फ़रेब-ए-हयात हूँ मुझ को भुला दिया मिरे परवरदिगार ने नौहा-गारों को भी है गला बैठने की फ़िक्र जाता हूँ आप अपनी अजल… Continue reading आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है

आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म’आनी ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं… Continue reading आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है चिपक रहा है बदन पर लहू से… Continue reading हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है