दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ मगर लब पर दुआ है और मैं हूँ न साक़ी है न अब वो शय है बाकी मिरा दौर आ गया है और मैं हूँ उधर दुनिया है और दुनिया के बंदे इधर मेरा ख़ुदा है और मैं हूँ कोई पुरसाँ नहीं पीर-ए-मुगाँ का फ़क़त मेरी वफ़ा है और मैं… Continue reading दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे किसी मुसीबत में जान है प्यारे तू मिरे हाल का ख़याल न कर इस में भी एक शान है प्यारे तल्ख़ कर दी है ज़िंदगी जिस ने कितनी मीठी है ज़बान है प्यारे वक़्त कम है न छेड़ हिज्र की बात ये बड़ी दास्तान है प्यारे जाने क्या कह… Continue reading दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अगर मौज है बीच धारे चला चल वगरना किनारे किनारे चला चल इसी चाल से मेरे प्यारे चला चल गुज़रती है जैसे गुज़ारे चला चल तुझे साथ देना है बहरूपियों का नए से नया रूप धारे चला चल ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में किसी नाख़ुदा के सहारे चला चल पहुँच जाएँगे क़ब्र में… Continue reading अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अँधेरा है ये मिरी रात का सवेरा है रह-ज़नों से तो भाग निकला था अब मुझे रह-बरों ने घेरा है आगे आगे चलो तबर वालो अभी जंगल बहुत घनेरा है क़ाफ़िला किस की पैरवी में चले कौन सब से बड़ा लुटेरा है सर पे राही की सरबराही ने क्या सफाई… Continue reading अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने ग़फ़लत ज़रा न की मिरे ग़फ़लत-शेआर ने ओ बे-नसीब दिन के तसव्वुर ये ख़ुश न हो चोला बदल लिया है शब-ए-इंतिज़ार ने अब तक असीर-ए-दाम-ए-फ़रेब-ए-हयात हूँ मुझ को भुला दिया मिरे परवरदिगार ने नौहा-गारों को भी है गला बैठने की फ़िक्र जाता हूँ आप अपनी अजल… Continue reading आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी