फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2] दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6] साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11] दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में… Continue reading फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब