अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया / बशीर बद्र

अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना आईना बात… Continue reading अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया / बशीर बद्र

ख़ुशबू की तरह आया, वो तेज हवाओं में / बशीर बद्र

ख़ुशबू की तरह आया, वो तेज हवाओं में माँगा था जिसे हमने दिन-रात दुआओं में तुम छत पे नहीं आए, मैं घर से नहीं निकला ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी बिजली सी घटाओं में, ख़ुशबू सी हवाओं में मौसम का इशारा है खुश… Continue reading ख़ुशबू की तरह आया, वो तेज हवाओं में / बशीर बद्र

सूरज भी बँधा होगा देखो मेरे बाजू में / बशीर बद्र

सूरज भी बँधा होगा देखो मेरे बाजू में इस चाँद को भी रखना सोने के तराजू में अब हमसे शराफ़त की उम्मीद न कर दुनिया पानी नहीं मिल सकता तपती हुई बालू में तारीक समन्दर के सीने में गुहर ढूँढो जुगनू भी चमकते हैं बरसात के आँसू में दिलदारो सनम झूटे सब दैरो-हरम छूटे हम… Continue reading सूरज भी बँधा होगा देखो मेरे बाजू में / बशीर बद्र

वक़्ते-रुख़सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए / बशीर बद्र

वक़्ते-रुख़सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए हार पहनाने मुझे फूल से बाजू आए बस गई है मेरे अहसास में ये कैसी महक कोई ख़ुशबू मैं लगाऊँ, तेरी ख़ुशबू आए इन दिनों आपका आलम भी अजब आलम है तीर खाया हुआ जैसे कोई आहू आए उसकी बातें कि गुलो-लाला पे शबनम बरसे सबको अपनाने का उस… Continue reading वक़्ते-रुख़सत कहीं तारे कहीं जुगनू आए / बशीर बद्र

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता / बशीर बद्र

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता तुम्हारा शहर तो बिल्कुल… Continue reading परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता / बशीर बद्र

मैं ज़मीं ता आसमाँ वो क़ैद आतिशदान में / बशीर बद्र

मैं ज़मीं ता आसमाँ, वो कैद आतिशदान में धूप रिश्ता बन गई, सूरज में और इन्सान में मैं बहुत दिन तक सुनहरी धूप खा आँगन रहा एक दिन फिर यूँ हुआ शाम आ गई दालान में किस के अन्दर क्या छुपा है कुछ पता चलता नही तैल की दौलत मिली वीरान रेगिस्तान में शक़्ल, सूरत,… Continue reading मैं ज़मीं ता आसमाँ वो क़ैद आतिशदान में / बशीर बद्र

लगी दिल की हमसे कही जाय ना / बशीर बद्र

लगी दिल की हमसे कही जाय ना ग़ज़ल आँसुओं से लिखी जाय ना अजब है कहानी मिरे प्यार की लिखी जाय लेकिन पढ़ी जाय ना सवेरे से पनघट पे बैठी रहूँ पिया बिन गगरिया भरी जाय ना न मन्दिर न मस्जिद न दैरो-हरम हमारी कहीं भी सुनी जाय ना ख़ुदा से ये बाबा दुआएं करो… Continue reading लगी दिल की हमसे कही जाय ना / बशीर बद्र

शोलए गुल, गुलाबे शोला क्या / बशीर बद्र

शोलए गुल, गुलाबे शोला क्या आग और फूल का ये रिश्ता क्या तुम मिरी ज़िन्दगी हो ये सच है ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या कितनी सदियों की क़िस्मतों का अमीं कोई समझे बिसाते लम्हा क्या जो न आदाब-ए-दुश्मनी जाने दोस्ती का उसे सलीक़ा क्या जब कमर बाँध ली सफ़र के लिये धूप क्या, मेघ क्या… Continue reading शोलए गुल, गुलाबे शोला क्या / बशीर बद्र

ख़ुफ़ता शजर लरज़ उठे जैसे कि डर गये / बशीर बद्र

ख़ुफ़ता शजर लरज़ उठे जैसे कि डर गये कुछ चाँदनी के फूल ज़मीं पर बिखर गये शीशे का ताज सर पे रखे आ रही थी रात टकराई हम से चाँद-सितारे बिखर गये वो ख़ुश्क होंठ रेत से नम माँगते रहे जिन की तलाश में कई दरिया गुज़र गये चाहा था मैंने चाँद की पलकों को… Continue reading ख़ुफ़ता शजर लरज़ उठे जैसे कि डर गये / बशीर बद्र

ज़ख्म यूँ मुस्करा के खिलते हैं / बशीर बद्र

ज़ख़्म यूँ मुस्कुरा के खिलते हैं जैसे वो दिल को छू के गुज़रे हैं दर्द का चाँद, आँसुओं के नुजूम दिल के आँगन में आज उतरे हैं राख के ढेर जैसे सर्द मकाँ चाँद इन बदलियों में रहते हैं आईनों का कोई कुसूर नहीं इन में अपने ही अक़्स होते हैं ग़ौर से देख ख़ाक… Continue reading ज़ख्म यूँ मुस्करा के खिलते हैं / बशीर बद्र