इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ / बशीर बद्र

इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ मेरा उसूल है, पहले सलाम करता हूँ मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ मैं अपनी जेब में अपना पता नहीं रखता सफ़र में सिर्फ यही एहतमाम करता हूँ मैं डर गया हूँ बहुत सायादार पेड़ों से ज़रा सी धूप बिछाकर… Continue reading इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ / बशीर बद्र

सात रंगों के शामियाने हैं / बशीर बद्र

सात रंगों के शामियाने हैं दिल के मौसम बड़े सुहाने हैं कोई तदबीर भूलने की नहीं याद आने के सौ बहाने हैं दिल की बस्ती अभी कहाँ बदली ये मौहल्ले बहुत पुराने हैं हक़ हमारा नहीं दरख़्तों पर ये परिन्दों के आशियाने हैं इल्मो-हिक़मत, सियासतो-मज़हब अपने अपने शराबख़ाने हैं धूप का प्यार ख़ूबसूरत है आग… Continue reading सात रंगों के शामियाने हैं / बशीर बद्र

दालानों की धूप, छतों की शाम कहाँ / बशीर बद्र

दालानों की धूप, छतों की शाम कहाँ घर से बाहर घर जैसा आराम कहाँ बाज़ारों की चहल-पहल से रोशन है इन आँखों में मन्दिर जैसी शाम कहाँ मैं उसको पहचान नहीं पाया तो क्या याद उसे भी आया मेरा नाम कहाँ चन्दा के बस्ते में सूखी रोटी है काजू, किशमिश, पिस्ते और बादाम कहाँ लोगों… Continue reading दालानों की धूप, छतों की शाम कहाँ / बशीर बद्र

हम लोग सोचते हैं हमें कुछ मिला नहीं / बशीर बद्र

हम लोग सोचते हैं हमें कुछ मिला नहीं शहरों से वापसी का कोई रास्ता नहीं इक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं किस को तलाश करते रहे कुछ पता नहीं शिद्दत की धूफ, तेज हवाओं के बावज़ूद मैं शाख़ से गिरा हूँ, नज़र से गिरा नहीं आख़िर ग़ज़ल का ताजमहल भी है मक़बरा हम ज़िन्दगी… Continue reading हम लोग सोचते हैं हमें कुछ मिला नहीं / बशीर बद्र

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना / बशीर बद्र

किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना मगर दिल को हर रात इक बार पढ़ना सियासत की अपनी अलग इक ज़बाँ है लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना अलामत नये शहर की है सलामत हज़ारों बरस की ये दीवार पढ़ना किताबें, किताबें, किताबें, किताबें कभी तो वो आँखें, वो रुख़सार पढ़ना मैं काग़ज की तक़दीर पहचानता हूँ… Continue reading किताबें, रिसाले न अख़बार पढ़ना / बशीर बद्र

नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा / बशीर बद्र

नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा शे’र लिखा या ख़त उसको गुमनाम लिखा उस दिन पहला फूल लिखा जब पतझड़ ने पत्ती-पत्ती जोड़ के तेरा नाम लिखा उस बच्चे की कापी अक्सर पढ़ता हूँ सूरज के माथे पर जिसने शाम लिखा कैसे दोनों वक़्त गले मिलते हैं रोज़ ये मंज़र मैंने दुश्मन के नाम… Continue reading नाम उसी का नाम सवेरे शाम लिखा / बशीर बद्र

आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे / बशीर बद्र

आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे देखने वाला तेरी आवाज़ को देखा करे उसकी रहमत ने मिरे बच्चे के माथे पर लिखा इस परिन्दे के परों पर आस्माँ सज़दा करे एक मुट्ठी ख़ाक थे हम, एक मुट्ठी ख़ाक हैं उसकी मर्ज़ी है हमें सहरा करे, दरिया करे दिन का शहज़ादा मिरा मेहमान है,… Continue reading आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे / बशीर बद्र

ग़मों की आयतें शब भर छतों पे चलती हैं / बशीर बद्र

ग़मों की आयतें शब भर छतों पे चलती हैं इमाम बाड़ों से सैदानियाँ निकलती हैं उदासियों को सदा दिल के ताक में रखना ये मोमबत्तियाँ हैं, फ़ुर्सतों में जलती हैं रसोई घर में ये अहसास रोज होता है तिरी दुआओं के पंखे हवायें झलती हैं अजीब आग है हमदर्दियों के मौसम की ग़रीब बस्तियाँ बरसात… Continue reading ग़मों की आयतें शब भर छतों पे चलती हैं / बशीर बद्र

सदियों की गठरी सर पर ले जाती है / बशीर बद्र

सदियों की गठरी सर पर ले जाती है दुनिया बच्ची बन कर वापस आती है मैं दुनिया की हद से बाहर रहता हूँ घर मेरा छोटा है लेकिन ज़ाती है दुनिया भर के शहरों का कल्चर यकसाँ आबादी, तन्हाई बनती जाती है मैं शीशे के घर में पत्थर की मछली दरिया की ख़ुशबू, मुझमें क्यों… Continue reading सदियों की गठरी सर पर ले जाती है / बशीर बद्र

कोई चिराग़ नहीं है मगर उजाला है / बशीर बद्र

कोई चिराग़ नहीं है मगर उजाला है ग़ज़ल की शाख़ पे इक फूल खिलने वाला है ग़ज़ब की धूप है इक बे-लिबास पत्थर पर पहाड़ पर तेरी बरसात का दुशाला है अजीब लहजा है दुश्मन की मुस्कराहट का कभी गिराया है मुझको कभी सँभाला है निकल के पास की मस्जिद से एक बच्चे ने फ़साद… Continue reading कोई चिराग़ नहीं है मगर उजाला है / बशीर बद्र