शोलए गुल, गुलाबे शोला क्या / बशीर बद्र

शोलए गुल, गुलाबे शोला क्या
आग और फूल का ये रिश्ता क्या

तुम मिरी ज़िन्दगी हो ये सच है
ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या

कितनी सदियों की क़िस्मतों का अमीं
कोई समझे बिसाते लम्हा क्या

जो न आदाब-ए-दुश्मनी जाने
दोस्ती का उसे सलीक़ा क्या

जब कमर बाँध ली सफ़र के लिये
धूप क्या, मेघ क्या है साया क्या

जिन को दुनिया ग़ज़ल समझती है
पूछते हैं वो शे’र-ओ-मिसरा क्या

काम की पूछते हो गर साहब
आशिक़ी के अलावा पेशा क्या

बात मतलब की सब समझते हैं
साहिबे-नश्शा, ग़र्क़े बादा क्या

दिल दुखों को सभी सताते हैं
शे’र क्या, गीत क्या, फ़साना क्या

सब हैं किरदार इक कहानी के
वरना शैतान क्या, फ़रिश्ता क्या

जान कर हम बशीर ’बद्र’ हुये
इसमें तक़दीर का नविश्ता क्या

(१९६०)

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *