लगी दिल की हमसे कही जाय ना
ग़ज़ल आँसुओं से लिखी जाय ना
अजब है कहानी मिरे प्यार की
लिखी जाय लेकिन पढ़ी जाय ना
सवेरे से पनघट पे बैठी रहूँ
पिया बिन गगरिया भरी जाय ना
न मन्दिर न मस्जिद न दैरो-हरम
हमारी कहीं भी सुनी जाय ना
ख़ुदा से ये बाबा दुआएं करो
हमें छोड़कर वो कहीं जाय ना
सुनाते-सुनाते सहर हो गई
मगर बात दिल की कही जाय ना
(१९८७)