1. मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है. 2. याद-ए-माज़ी अज़ाब है या रब छीन ले मुझ से हाफ़िज़ा मेरा
Category: Akhtar Ansari
सुनने वाले फ़साना तेरा है / अख़्तर अंसारी
सुनने वाले फ़साना तेरा है सिर्फ़ तर्ज़-ए-बयाँ ही मेरा है यास की तीरगी ने घेरा है हर तरफ़ हौल-नाक अँधेरा है इस में कोई मेरा शरीक नहीं मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है चाँदनी चाँदनी नहीं ‘अख़्तर’ रात की गोद में सवेरा है
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम / अख़्तर अंसारी
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम मस्त-ए-शराब-ए-शौक़ हूँ ख़य्याम की क़सम इशरत-फ़रोश था मेरा गुज़रा हुआ शबाब कहता हूँ खा के इशरत-ए-अय्याम की क़सम होती थी सुब्ह-ए-ईद मेरी सुब्ह पर निसार खाती थी शाम-ए-ऐश मेरी शाम की क़सम ‘अख़्तर’ मज़ाक़-ए-दर्द का मारा हुआ हूँ मैं खाते हैं अहल-ए-दर्द मेरे नाम की क़सम
समझता हूँ मैं सब कुछ / अख़्तर अंसारी
समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता तड़पता हूँ मगर औरों को तड़पाना नहीं आता ये जमुना की हसीं अमवाज क्यूँ अर्गन बजाती हैं मुझे गाना नहीं आता मुझे गाना नहीं आता ये मेरी ज़ीस्त ख़ुद इक मुस्तक़िल तूफ़ान है ‘अख़्तर’ मुझे इन ग़म के तूफ़ानों से घबराना नहीं आता
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है / अख़्तर अंसारी
क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है मेरे जिगर में इक आतिश-कदा दहकता है गुज़िश्ता काहिश ओ अंदोह के ख़याल ठहर मेरे दिमाग़ में शोला सा इक भड़कता है किसी के ऐश-ए-तमन्ना की दास्ताँ न कहो कलेजा मेरी तमन्नाओं का धड़कता है इलाज-ए-‘अख़्तर’-ए-ना-काम क्यूँ नहीं मुमकिन अगर वो जी नहीं सकता तो मर… Continue reading क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है / अख़्तर अंसारी
फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया / अख़्तर अंसारी
फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया दिल अजब अंदाज़ से लहरा गया उस से पूछे कोई चाहत के मज़े जिस ने चाहा और जो चाहा गया एक लम्हा बन के ऐश-ए-जावेदाँ मेरी सारी ज़िंदगी पर छा गया ग़ुँचा-ए-दिल है कैसा ग़ुँचा था जो खिला और खिलते ही मुरझा गया रो रहा हूँ मौसम-ए-गुल देख… Continue reading फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया / अख़्तर अंसारी
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में / अख़्तर अंसारी
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में रहा करती है शादाबी ख़ज़ाँ के भी महीनों में ज़िया-ए-महर आँखों में है तौबा मह-जबीनों में के फ़ितरत ने भरा है हुस्न ख़ुद अपना हसीनों में हवा-ए-तुंद है गर्दाब है पुर-शोर धारा है लिए जाते हैं ज़ौक-ए-आफ़ियत सी शय सफीनों में मैं हँसता हूँ मगर ऐ दोस्त अक्सर… Continue reading मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में / अख़्तर अंसारी
मोहब्बत है अज़ीयत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है / अख़्तर अंसारी
मोहब्बत है अज़ीयत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है जवानी और इतनी दुख भरी कैसी क़यामत है वो माज़ी जो है इक मजमुआ अश्कों और आहों का न जाने मुझ को इस माज़ी से क्यूँ इतनी मोहब्बत है लब-ए-दरिया मुझे लहरों से यूँही चहल करने दो के अब दिल को इसी इक शुग़्ल-ए-बे-मानी में राहत है तेरा अफ़साना… Continue reading मोहब्बत है अज़ीयत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है / अख़्तर अंसारी
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है / अख़्तर अंसारी
मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है गुफ़्तुगू से जुनूँ टपकता है मस्त हूँ मैं मेरी नज़र से भी बाद-ए-लाला-गूँ टपकता है हाँ कब ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है आह ‘अख़्तर’ मेरी हँसी से भी मेरा हाल-ए-ज़ुबूँ टपकता है
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है / अख़्तर अंसारी
मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है बयाँ तो हो नहीं सकती जो अपनी हालत है मेरे सफ़ीने को धारे पे डाल दे कोई मैं डूब जाऊँ के तैर जाऊँ मेरी क़िस्मत है रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़ शबाब कहते हैं जिस चीज़ को क़यामत है लताफ़तें सिमट… Continue reading मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है / अख़्तर अंसारी