मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है / अख़्तर अंसारी

मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है
गुफ़्तुगू से जुनूँ टपकता है

मस्त हूँ मैं मेरी नज़र से भी
बाद-ए-लाला-गूँ टपकता है

हाँ कब ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है

आह ‘अख़्तर’ मेरी हँसी से भी
मेरा हाल-ए-ज़ुबूँ टपकता है

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