सुनने वाले फ़साना तेरा है / अख़्तर अंसारी

सुनने वाले फ़साना तेरा है
सिर्फ़ तर्ज़-ए-बयाँ ही मेरा है

यास की तीरगी ने घेरा है
हर तरफ़ हौल-नाक अँधेरा है

इस में कोई मेरा शरीक नहीं
मेरा दुख आह सिर्फ़ मेरा है

चाँदनी चाँदनी नहीं ‘अख़्तर’
रात की गोद में सवेरा है

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