सलवटें / आकांक्षा पारे

जो चुभती हैं तुम्हें वो निगाहें नहीं हैं लोगों की वो सलवटें हैं मेरे बिस्तर की जो बन जाती हैं अकसर रात भर करवटें बदलते हुए।

एक टुकड़ा आसमान / आकांक्षा पारे

लड़की के हिस्से में है खिड़की से दिखता आसमान का टुकड़ा खुली सड़क का मुँहाना एक व्यस्त चौराहा और दिन भर का लम्बा इन्तज़ार। खिड़की पर तने परदे के पीछे से उसकी आँखें जमी रहती हैं व्यस्त चौराहे की भीड़ में खोजती हैं निगाहें रोज एक परिचित चेहरा। अब चेहरा भी करता है इन्तज़ार दो… Continue reading एक टुकड़ा आसमान / आकांक्षा पारे

रिश्ते / आकांक्षा पारे

बिना आवाज़ टूटते हैं रिश्ते या उखड़ जाते हैं जैसे धरती का सीना फाड़े मजबूती से खड़ा कोई दरख़्त आंधी से हार कर छोड़ देता है अपनी जड़े!

भरोसा / आकांक्षा पारे

भरोसा बहुत ज़रूरी है इन्सान का इन्सान पर यदि इन्सान तोड़ता है यकीन तब इन्सान ही कायम करता है इसे दोबारा भरोसे ने ही जोड़ रखें हैं पड़ोस भरोसे पर ही चलती है कारोबारी दुनिया भरोसे पर ही आधी दुनिया उम्मीद करती है अच्छे कल की आज भी सिर्फ़ भरोसे पर ही ब्याह दी जाती… Continue reading भरोसा / आकांक्षा पारे

घर / आकांक्षा पारे

सड़क किनारे तनी हैं सैकड़ों नीली, पीली पन्नियाँ ठिठुरती रात झुलसते दिन गीली ज़मीन टपकती छत के बावजूद गर्व से वे कहते हैं उन्हें घर उन घरों में हैं चूल्हे की राख पेट की आग सपनों की खाट हौसले का बक्सा उम्मीद का कनस्तर कल की फ़िक्र किए बिना वे जीते हैं आज कभी अतिक्रमण… Continue reading घर / आकांक्षा पारे

चिन्ता / आकांक्षा पारे

किसी भी आने-जाने वाले के हाथ माँ भेजती रहती है कुछ न कुछ आज भी घर से आई हैं ढेर सौगात प्यार में पगे शकरपारे लाड़ की झिड़की जैसी नमकीन मठरियाँ भेज दी हैं कुछ किताबें भी जो छूट गई थीं पिछली दफ़ा काग़ज़ के छोटे टुकड़े पर पिता ने लिख भेजी हैं कुछ नसीहतें… Continue reading चिन्ता / आकांक्षा पारे

प्रेम / आकांक्षा पारे

जो कहते हैं प्रेम पराकाष्ठा है वे ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम आंदोलन है वे ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम समर्पण है वे भी ग़लत हैं जो कहते हैं प्रेम पागलपन है वे भी इसे समझ नहीं पाए प्रेम इनमें से कुछ भी नहीं है प्रेम एक समझौता है जो दो लोग आपस… Continue reading प्रेम / आकांक्षा पारे

बदलती परिभाषा / आकांक्षा पारे

बचपन में कहती थी माँ प्यार नहीं होता हँसी-खेल वह पनपता है दिल की गहराई में रोंपे गए उस बीज से जिस पर पड़ती है आत्मीयता की खाद होता है विचारों का मेल। साथ ही समझाती थी माँ प्रेम नहीं होता गुनाह कभी वह हो सकता है कभी भी उसके लिए नहीं होते बंधन न… Continue reading बदलती परिभाषा / आकांक्षा पारे

असफल प्रयास / आकांक्षा पारे

तुम्हें भूलने की कोशिश के साथ लौटी हूँ इस बार मगर तुम्हारी यादें चली आई हैं सौंधी खुश्बू वाली मिट्टी साथ चली आती है जैसे तलवों में चिपक कर पतलून के मोड़ में दुबक कर बैठी रेत की तरह साथ चले आए हैं तुम्हारे स्मृतियों के मोती।

नासमझी / आकांक्षा पारे

मेरे कहने तुम्हारे समझने के बीच कब फ़ासला बढ़ता गया मेरे हर कहने का अर्थ बदलता रहा तुम तक जा कर हर दिन समझने-समझाने का यह खेल हम दोनों को ही अब बना गया है इतना नासमझ कि स्पर्श के मायने की परिभाषा एक होने पर भी नहीं समझते उसे हम दोनों