तवी में तैरने के लिए तुम सीख रहे हो तैराकी सुनो अली अदालती, मेरे शरणार्थी कैम्प से एक दिन गायब हुई एक जवान लड़की वह पहुंची थी निबिड़ और घने अंधेरो को पार कर बारूद भरी घटी में अपने गाँव और कूद पड़ी कपड़ों सहित मछलियों से भरे सूर्यकुण्ड के हरे रेशमी जल में तैर… Continue reading एक पाकिस्तानी दोस्त का आना-2 / अग्निशेखर
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एक पाकिस्तानी दोस्त का आना-1 / अग्निशेखर
जीवन में एक बार उसे जम्मू आकर तैरना है तवी में यहाँ देश बटवारे से पहले तेरा करते थे अब्बा वह आ रहा है पकिस्तान से यहाँ तवी के घाट पर जैसे शरणार्थी – कैंप में मरे पिता की अस्थियाँ लेकर गया था मै कश्मीर मन ही मन जहाँ बहती है मेरे पुरखों की नदी… Continue reading एक पाकिस्तानी दोस्त का आना-1 / अग्निशेखर
एक फ़िल्मी कवि से / अग्निशेखर
देखो, कुछ देर के लिए सोने दो मेरे रिसते घावों को अभी-अभी आई है मेरे प्रश्नों को नींद मुझे मत कहो गुलाब एक बिसरी याद हूँ जाग जाऊँगा मुझे मत कहो गीत सुलग जाऊँगा बर्फ़ीले पहाड़ों पर मुझे चाहिए दवा कुछ ज़रूरी उत्तर अपना-सा मौसम थोड़ा-सा प्रतिशोध मै दहक रहा हूँ गए समय की पीठ… Continue reading एक फ़िल्मी कवि से / अग्निशेखर
जवाहर टनल (कविता) / अग्निशेखर
गीले और घने अँधेरे से भरी थी जवाहर लाल नेहरू सुरंग और हम दहशत खाए लोग भाग रहे थे सहमी बसों में जवाहर लाल नेहरू सुरंग में जैसे कूट कूट कर भर गया था अँधेरा इतने वर्ष और टप टप गिरती बूँदें ये ज़ार ज़ार रो रहा था पाँचाल पर्वत नेहरू के गुमान पर या… Continue reading जवाहर टनल (कविता) / अग्निशेखर
गूँगी माँ / अग्निशेखर
[ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”कश्मीर के लोकभवन गाँव की लोक-स्मृति में रची-बसी एक गूँगी स्त्री.”]गूँगी माँ[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] कहते हैं गूँगी थी वह लेकिन चिड़ियों से करती थी बातें कहते हैं बहरी थी परन्तु पेड़ झुक कर सुनाते उसे फ़रियाद कहते हैं किसी काम की न थी पर फूल चुनते देखी जाती गाँव में लोग उसकी फटी झोली पर खाते… Continue reading गूँगी माँ / अग्निशेखर
पुल पर गाय / अग्निशेखर
सब तरफ बर्फ़ है ख़ामोश जले हुए हमारे घरों से ऊँचे हैं निपत्ते पेड़ एक राह भटकी गाय पुल से देख रही है ख़ून की नदी रंभाकर करती है आकाश में सुराख़ छींकती है जब भी मेरी माँ यहाँ विस्थापन में उसे याद कर रही होती है गाय इतने बरसो बाद भी नहीं थमी है… Continue reading पुल पर गाय / अग्निशेखर
अयप्पा पणिक्कर / अग्निशेखर
मैंने तुम्हे जिसके अनुवादों से जाना वह कल फ़ोन पर रो रही थी मेरी आत्मा की सीपियों में भर गए है तुम्हारे गीत तुम नही जानते हो कवि की सीपियाँ मोहताज नहीं होती स्वाति-नक्षत्र की ओ खुरदुरे नारियल की तरह भीतर से तरल कवि मैंने तुम्हे तुम्हारी अनुवादक के आँसुओं में साफ़ साफ़ देख लिया… Continue reading अयप्पा पणिक्कर / अग्निशेखर
बारिश में पिट रही स्त्री / अग्निशेखर
तेज़ बारिश और आधी रात में मेरा पड़ोसी अपनी पत्नी को पीट रहा है जैसे स्वतत्रता-संग्राम का कोई दृश्य हो थाने में सत्याग्रही बारिश में पीट रहा है मेरा पड़ोसी अपनी पत्नी को नि:शब्द है स्त्री संकोच और लज्जा के साथ कौन नहीं जानता आँसुओं की दुनिया में चेहरे पर हँसी स्त्री के ईजाद है… Continue reading बारिश में पिट रही स्त्री / अग्निशेखर
अलाव / अग्निशेखर
पहुँच गए थे हम निबिड़ रात और बीहड़ अरण्य में जलाया सघन देवदारों के नीचे हमने अलाव तप गया हमारा हौसला सुबह होने तक रखा तुमने मेरे सीने पर धीरे से अपना सिर स्मृतियों से भरा विचारों से स्पंदित और स्वप्न से मौलिक भय और आशंकाओं के बीच सुनी तुमने मेरी धडकनों पर तैर रही… Continue reading अलाव / अग्निशेखर
केन पर भिनसार / अग्निशेखर
बीच पुल पर खड़ा मैं अवाक ओस भीगी नीरवता में बांदा के आकाश का चन्द्रमा हो रहा विदा केन तट पर छोड़े जा रहा पाँव के निशान बड़ी-बड़ी पलकों वाली उसकी प्रेयसी बेख़बर मेरी और मेरे कविमित्र की मौज़ूदगी से निहारती एकटक वो मुक्तकेशी जन्मों से बँधी अभी मांग में उतरेगा केसर और संसार बदल… Continue reading केन पर भिनसार / अग्निशेखर