एक पाकिस्तानी दोस्त का आना-2 / अग्निशेखर

तवी में तैरने के लिए
तुम सीख रहे हो तैराकी
सुनो अली अदालती,
मेरे शरणार्थी कैम्प से एक दिन
गायब हुई
एक जवान लड़की

वह पहुंची थी
निबिड़ और घने अंधेरो को पार कर
बारूद भरी घटी में अपने गाँव
और कूद पड़ी कपड़ों सहित
मछलियों से भरे सूर्यकुण्ड के हरे
रेशमी जल में

तैर कर गई कुण्ड के बीचोबीच
अपने इष्ट के पास
चढ़ाया बरसो बाद नाम आँखों से जल

रो पड़ी सूर्यकुण्ड की
असंख्य मछलियाँ उसे देख
सिसकियाँ भरी
बुजुर्ग चिनारों ने
पर्वतो ने बहाए बर्फ के आंसू
आकाश से उतरे पेड़ों पर
हजारो पंछी
गोया किन्नर हों
गन्धर्व हों
वह तैरती रही
सूर्यकुंड में
स्मृति में
स्वप्न में
नींद में
उसे पहचाना हवाओ ने
मिटटी की सोंधी गंध ने
वह तैरती रही
त्रासद उल्लास में
जैसे तैर रही हो अंतिम बार

उसके आगे पीछे
पानी की दुनिया में फैल गई
मछलियाँ …
यह रक्षा कवच उनका !

वह तैरती रही आपे से बाहर होकर
और भाग आई
रातों रात वापस निर्वासन में

वह आज तक हैरान है
उसे जल में तैरना कैसे आया.

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