बदला देश चरागाहों मे अब कैसी पाबन्दी ख़ुद के लिए समूची धरती ग़ैरों पर हदबन्दी निज वेतन भत्तों के बिल पर सहमति दिखती आई जनता के मसले पर संसद खेले छुपम-छुपाई देशधर्म जनहित की बातें आज हुईं बेमानी सड़कों पर हो रही मान -मूल्यों की चिन्दी-चिन्दी शस्य श्यामला धरती का यह कैसा शील हरण उपजाऊ… Continue reading बदला देश चरागाहों मे / ओम निश्चल
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संबंधों की अलगनियों पर / ओम निश्चल
किसिम किसिम के संबोधन के महज दिखावे हैं संबंधों की अलगनियों पर सबके दावे हैं । दुर्घटना की आशंकाएँ जैसे जहाँ-तहाँ कुशल-क्षेम की तहकी़कातें होती रोज़ यहाँ अपनेपन की गंध तनिक हो इनमें मुमकिन है पर ये रटे-रटाए जुमले महज छलावे हैं । घर दफ़्तर हर जगह दीखते बाँहें फैलाए होठों पर मुस्कानें ओढ़े भीड़ों… Continue reading संबंधों की अलगनियों पर / ओम निश्चल
लिख रहे हैं लोग कविताएँ / ओम निश्चल
भर गया तेज़ाब-सा कोई ख़ुशनुमा माहौल में आकर । नींद में हर वक़्त चुभता है आँधियों का शोर- सन्नाटा कटघरों में ज्यों- पड़े सोए क़ैदियों की पीठ पर चाँटा तैरता दु:स्वप्न-सा हर दृश्य पुतलियों के ताल में अक्सर । सड़क पर मुस्तैद संगीनें– बंद अपने ही घरों में हम आदमी की शक़्ल में क़ातिल कौन… Continue reading लिख रहे हैं लोग कविताएँ / ओम निश्चल
यह वेला शाम की / ओम निश्चल
पूजन आराधन की अर्चन नीराजन की स्वस्तिपूर्ण जीवन के सुखमय आवाहन की यह वेला सपनों के मोहक विश्राम की यह वेला शाम की यह वेला जीत की यह वेला हार की यह वेला शब्दों के नख-शिख शृंगार की दिन भर की मेहनत के बेहतर परिणाम की यह वेला शाम की यह वेला गीत की यह… Continue reading यह वेला शाम की / ओम निश्चल
नदी का छोर / ओम निश्चल
यह खुलापन यह हँसी का छोर मन को बाँधता है । सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है । बादलों के व्यूह में भटकी हुई मद्धिम दुपहरी कौंध जाती बिजलियों-सी आँख में छवियाँ छरहरी गुनगुनाती घाटियों का शोर मन को बाँधता है । सामने फैला नदी का छोर मन को बाँधता है ।… Continue reading नदी का छोर / ओम निश्चल
जब हवा सीटियाँ बजाती है / ओम निश्चल
दूर तक बस्तियों सिवानों में गन्ध फ़सलों की महमहाती है, जब हवा सीटियाँ बजाती है । एक सहलाव भरी गंध लिये आता है आता है बालियाँ लिए मौसम धान का हरापन ठिठकता है, महक उठता है ख़ुशबुओं से मन पत्तियों में छिपी कहीं कोयल धूप के गीत-गुनगुनाती है, जब हवा सीटियाँ बजाती है । एक… Continue reading जब हवा सीटियाँ बजाती है / ओम निश्चल
छुआ मुझे तुमने रूमाल की तरह / ओम निश्चल
ति के लिए… साहित्य के प्रसार के लिए हिन्दी – उर्दू । भोजपुरी । मैथिली । राजस्थानी । संस्कृतम् । अवधी । हरियाणवी । …अन्य भाषाएँ कविता कोश विशेष क्यों है?कविता कोश परिवारRoman छुआ मुझे तुमने रूमाल की तरह / ओम निश्चल मुखपृष्ठ»रचनाकारों की सूची»ओम निश्चल» थके हुए काँधे पर भाल की तरह, छुआ मुझे… Continue reading छुआ मुझे तुमने रूमाल की तरह / ओम निश्चल
यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल
तुम्हारे संग सोना हो तुम्हारे संग जगना हो कुटी हो प्यार की कोई कि जिसमें संग रहना हो कही जो अनकही बातें तुम्हारे संग करनी हों तुम्हारे संग जीना हो तुम्हारे संग मरना हो। यहीं होता कहीं पर गॉंव अपना एक छोटा-सा बसाते हम क्षितिज की छॉंव में कोई बसेरा-सा कहीं सरसों खिली होती कहीं… Continue reading यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल
एक साँस गंध नदी सी / ओम निश्चल
कौन भला गूँथ गया जूड़े में फूल सिहर उठा माथ हल्दिया. एक साँस गंध नदी सी लहरों सा गुनगुना बदन बात-बात पर हँसना रूठना हीरे सा पिघल उठे मन किसने छू लिया भला रेशमिया तन सिहर उठा हाथ मेंहदिया. एक प्यार सोन पिरामिड सा और बदन परछाईं सा जल तरंग जैसे बजता है मन मेरा… Continue reading एक साँस गंध नदी सी / ओम निश्चल
गुनगुनी धूप है / ओम निश्चल
गुनगुनी धूप है गुनगुनी छाँह है. एक तन एक मन एक वातावरण, प्यार की गंध का जादुई व्याकरण, मन में जागी मिलन की अमिट चाह है. नींद में हम मिलें स्वप्न में हम मिलें ज़िंदगी की हरेक साँस में हम खिलें हमको जग की नहीं आज परवाह है. चिट्ठियाँ जो लिखीं संधियाँ जो रचीं तुम… Continue reading गुनगुनी धूप है / ओम निश्चल