नज़र का मिल के टकराना न तुम भूले न हम भूले / कँवल डबावी

नज़र का मिल के टकराना न तुम भूले न हम भूले मोहब्बत का वो अफ़्साना न तुम भूले न हम भूले सताया था हमें कितना ज़माने के तग़य्युर ने ज़माने का बदल जाना न तुम भूले न हम भूले भरी बरसात में पैहम जुदाई के तसव्वुर से वो मिल कर अश्क बरसाना न तुम भूले… Continue reading नज़र का मिल के टकराना न तुम भूले न हम भूले / कँवल डबावी

न घूम दश्त में तू सहन-ए-गुलिस्ताँ से गुज़र / कँवल डबावी

न घूम दश्त में तू सहन-ए-गुलिस्ताँ से गुज़र जो चाहता है बुलंदी तो कहकशाँ से गुज़र ज़मीं को छोड़ के नादाँ न आसमाँ से गुज़र ज़रूरत इस की है तो उन के आस्ताने से गुज़र इसी से तेरी इबादत पे रंग आएगा जबीं झुकाना हुआ उन के आस्ताँ से गुज़र है असलियत है ख़िजाँ ही… Continue reading न घूम दश्त में तू सहन-ए-गुलिस्ताँ से गुज़र / कँवल डबावी

माह ओ अंजुम की रौशनी गुम है / कँवल डबावी

माह ओ अंजुम की रौशनी गुम है क्या हर इक बज़्म से ख़ुशी गुम है चाँद धुँदला है चाँदनी गुम है हुस्न वालों में दिल-कशी गुम है ज़िंदगी गुन न दोस्ती गुम है ये हक़ीक़त है आदमी गुम है इस तरक़्क़ी को और क्या कहिए शहर से सिद्क़ की गली गुम है फूल लाखों है… Continue reading माह ओ अंजुम की रौशनी गुम है / कँवल डबावी

कुछ बुझी बुझी सी है अंजुमन न जाने क्यूँ / कँवल डबावी

कुछ बुझी बुझी सी है अंजुमन न जाने क्यूँ ज़िंदगी में पिन्हाँ है इक चुभन न जाने क्यूँ और भी भुत से हैं लूटने को दुनिया में बन गए हैं रह-बर की राह बन-जान न जाने क्यूँ उन की फ़िक्र-ए-आला पर लोग सर को धुनते थे आज वो परेशाँ हैं अहल-ए-फ़न न जाने क्यूँ जिस… Continue reading कुछ बुझी बुझी सी है अंजुमन न जाने क्यूँ / कँवल डबावी

ग़म का इज़हार भी करने नहीं देती दुनिया / कँवल डबावी

ग़म का इज़हार भी करने नहीं देती दुनिया और मरता हूँ तो मरने नहीं देती दुनिया सब ही मय-ख़ाना-ए-हस्ती से पिया करत हैं मुझ को इक जाम भी भरने नहीं देती दुनिया आस्ताँ पर तेरे हम सर को झुका तो लेते हैं सर से ये बोझ उतरने नहीं देती दुनिया हम कभी दैर के तालिब… Continue reading ग़म का इज़हार भी करने नहीं देती दुनिया / कँवल डबावी

कुछ ना कहो / ओम निश्चल

कुछ ना कहो….. जैसे मैं बह रही हूँ भावों की नाव में वैसे तुम भी बहो….. कुछ ना कहो…………..कुछ ना कहो …..। थोड़ा चुप भी रहो जैसे चुप हैं हवाएँ जैसे गाती दिशाएँ जैसे बारिश की बून्दें सुनें आँख मूँदे जैसे बिखरा दे फिजां में कोई वैदिक ऋचाएँ यों ही बैठे रहो कल्‍पना के भुवन… Continue reading कुछ ना कहो / ओम निश्चल

ये सर्द मौसम ये शोख लम्‍हे / ओम निश्चल

ये सर्द मौसम, ये शोख लम्‍हे फ़िजा में आती हुई सरसता, खनक-भरी ये हँसी कि जैसे क्षितिज में चमके हों मेघ सहसा। हुलस के आते हवा के झोंके धुऍं के फाहे रुई के धोखे कहीं पे सूरज बिलम गया है कोई तो है, जो है राह रोके, किसी के चेहरे का ये भरम है हो… Continue reading ये सर्द मौसम ये शोख लम्‍हे / ओम निश्चल

दीवाली पर पिया / ओम निश्चल

दीवाली पर पिया, चौमुख दरवाज़े पर बालूँगी मैं दिया । ओ पिया । उभरेंगे आँखों में सपनों के इंद्रधनुष, होठों पर सोनजुही सुबह मुस्कराएगी, माथे पर खिंच जाएँगी भोली सलवटें अगवारे पिछवारे फ़सल महमहाएगी हेर-हेर फूलों की पाँखुरी जुटाऊँगी, आँगन-चौबारे छितराऊँगी मैं पिया । ओ पिया । माखन मिसरी बातें शोख मावसी रातें, अल्हड़ सौगंधों… Continue reading दीवाली पर पिया / ओम निश्चल

मेरी पगडंडी मत भूलना / ओम निश्चल

बँगले में रहना जी मोटर में घूमना मेरी पगडंडी मत भूलना । भूल गयी होंगी वे नेह छोह की बातें पाती लिख लिख प्रियवर भेज रही सौगातें हँसी-खुशी रहना जी फूलों-सा झूमना पर मेरी याद नहीं भूलना । मेरी पगडंडी मत भूलना ।। माना, मैं भोली हूँ अपढ़ हूँ, गँवारन हूँ पर दिल की सच्ची… Continue reading मेरी पगडंडी मत भूलना / ओम निश्चल

कह दो तो! / ओम निश्चल

जूड़े मे फूल टाँक दूँ ओ प्रिया कह दो तो हरसिंगार का दूध नहाई जैसी रात हुई साँवरी, रह-रह के भिगो रही पुरवाई बावरी, भीग गया है तन-मन पाँवों में है रुनझुन अंग-अंग में उभार दूँ ओ प्रिया, कह दो तो छंद प्यार का खुली हुई साँकल है खुली हुई खिडकियाँ शोख हवाएँ देतीं मंद-मंद… Continue reading कह दो तो! / ओम निश्चल