कह दो तो! / ओम निश्चल

जूड़े मे फूल टाँक दूँ
ओ प्रिया
कह दो तो हरसिंगार का

दूध नहाई जैसी रात
हुई साँवरी,
रह-रह के भिगो रही
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन-मन
पाँवों में है रुनझुन
अंग-अंग में उभार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो तो छंद प्यार का

खुली हुई साँकल है
खुली हुई खिडकियाँ
शोख हवाएँ देतीं
मंद-मंद थपकियाँ
भीतर बाहर अमंद
बिखरी है नेह गंध
साँस-साँस में उतार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो सुर सितार का

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