कन्फ़ेशन- मिय कल्पा…. / उज्जवला ज्योति तिग्गा

तो फ़िर बचता क्या है विकल्प सिवाय कहने के / मान लेने के / कि जी मंज़ूर है हमें / आपके सब आरोप शिरोधार्य है आपकी दी हर सज़ा जहाँ बांदी हो न्याय / सत्ता के दंड-विधान की जिसमें नित चढ़ती हो निर्दोषों की बलि दुष्ट / दोषी हो जाते हों बेदाग बरी गवाह /… Continue reading कन्फ़ेशन- मिय कल्पा…. / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जंगली घास / उज्जवला ज्योति तिग्गा

नहीं चलता है तुम्हारा या किसी का कोई भी नियम / कानून जंगली घास पर भले ही काट-छाँट लो घर / बगीचे की घास जो साँस लेती है तुम्हारे ही नियम कानून के अधीन … पर / बेतरतीब उबड़-खाबड़ उगती घास ढक देती है धरती की उघड़ी देह को अपने रूखे आँचल से और गुनगुनाती… Continue reading जंगली घास / उज्जवला ज्योति तिग्गा

बाँस की नन्ही-सी टहनी / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जड़ों का सघन जाल रच देता है एक अद्भुत दुनिया ज़मीन के अंदर काफ़ी गहरे तक कोमल तंतुओं का जाल कि बाँस की नन्ही-सी टहनी सब कुछ भुलाकर खेलती रहती है आँख-मिचौली उन जड़ों के अनगिन तंतुओं के सूक्ष्म सिरों की भूलभूलैया में छिपकर उस अन्धेरी दुनिया में बरसो तक बग़ैर इस बात की चिंता… Continue reading बाँस की नन्ही-सी टहनी / उज्जवला ज्योति तिग्गा

धरती के अनाम योद्धा / उज्जवला ज्योति तिग्गा

इतना तो तय है कि सब कुछ के बावजूद हम जिएँगे जंगली घास बनकर पनपेंगे / खिलेंगे जंगली फूलों-सा हर कहीं / सब ओर मुर्झाने / सूख जाने / रौंदे जाने कुचले जाने / मसले जाने पर भी बार-बार,मचलती है कहीं खिलते रहने और पनपने की कोई ज़िद्दी-सी धुन मन की अन्धेरी गहरी गुफ़ाओं /… Continue reading धरती के अनाम योद्धा / उज्जवला ज्योति तिग्गा

रिजेक्टेड माल / उज्ज्वल भट्टाचार्य

कहीं कोई कमी रह गई थी सादी आंखों से पकड़ में भी नहीं आने वाली लेकिन वो एक्सपोर्ट के काबिल नहीं रह गया साहबों के चमचमाते शोकेस के बदले उसे जगह मिली फ़ुटपाथ पर अचानक वो लगभग हर किसी की पहुंच के अंदर आ गया बेचने वाले शातिर थे ख़रीदने वाले भी शातिर दोनों एक-दूसरे… Continue reading रिजेक्टेड माल / उज्ज्वल भट्टाचार्य

टिम्बकटू / उज्ज्वल भट्टाचार्य

मुझे मालूम है अफ़्रीका के किसी मुल्क में कोई शहर है नाम है टिम्बकटू वहां के लोग मुझसे कुछ अलग दिखते हैं उनकी भाषा अलग है जो मैं नहीं समझता वे भी मेरी भाषा नहीं समझते इन बाशिंदों के लिये टिम्बकटू अपना है मेरे लिये पराया है और इसीलिये मैं वहां होना चाहता हूं. लेकिन… Continue reading टिम्बकटू / उज्ज्वल भट्टाचार्य

बयाबां और बस्ती / उज्ज्वल भट्टाचार्य

मैंने सुना था बयाबां की सरहद पर शुरू होती है बस्ती जहां मिलते हैं अपने भी. मैंने बस्ती देखी और लेौट चला बयाबां की ओर.

पेरुमल मुरुगन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

शहर के चौक के बीच खड़े होकर उस शख़्स ने कहा : मुझे पता है धरती घूमती है घूमती रहेगी. मैं पेरुमल मुरुगन हूं. और मैं ज़िंदा हूं लेकिन मेरे अंदर का लेखक मर चुका है. मैं कुछ नहीं लिखूंगा, मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पास खड़े दोस्त से मैंने पूछा : कौन है यह पेरुमल… Continue reading पेरुमल मुरुगन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

हादसा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

“राजीव चौक, कृपया दरवाज़ों से दूर हटकर खड़े हों.” मशीनी आवाज़ के बाद सारी भीड़ हरकत में आ जाती है. और तभी अचानक पूरे दम के साथ ट्रेन ब्रेक लगाती है, सब एक-दूसरे पर गिर पड़ते हैं, एक परेशानी का माहौल, कई मिनट तक दरवाज़े बंद ही रहते हैं, सारे लोग बेचैन हैं, फिर पता… Continue reading हादसा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं / ‘उनवान’ चिश्ती

वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं मिरी नज़र में हज़ारों गुलाब खिलते हैं तिरी निगाह-ए-जराहत असर सलामत-बाद कभी कभी ये मिरे दिल को ज़ख़्म मिलते हैं नफ़स नफ़स में मचलती है मौज-ए-निकहत-ओ-नूर कुछ इस तरह तिरे अरमाँ के फूल खिलते हैं मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ रह-ए-वफ़ा में तिरे नक़्श-ए-पा भी… Continue reading वो मुस्कुरा के मोहब्बत से जब भी मिलते हैं / ‘उनवान’ चिश्ती