अन्धेरी दुनिया / उज्जवला ज्योति तिग्गा

हमारे हिस्से का उजाला न जाने कहाँ खो गया कि आज भी मयस्सर नहीं हमें कतरा भर भी आसमाँ ज़िन्दगी जूठन और उतरन के सिवा कुछ भी नहीं चेहरे पर अपमान और लाँछन की चादर लपेट भटकते हैं रोज़ ही ज़िन्दगी की गलियों में आवारा कुत्तों और भिखारियों की तरह … औरो के दुख है… Continue reading अन्धेरी दुनिया / उज्जवला ज्योति तिग्गा

अन्धेरों का गीत / उज्जवला ज्योति तिग्गा

मूक बाँसुरी गाती है मन ही मन अन्धेरों के गीत मूक बाँसुरी में बसता है सोई हुई उम्मीदों और खोए हुए सपनों का भुतहा संगीत देखती है मूक बाँसुरी भी सपने, घने अन्धेरे जंगल में रोशनी की झमझम बारिश का मूक बाँसुरी में क़ैद है अन्धेरे का अनसुना संगीत

टिड्डियों सा दल बाँधे लौटेंगे वे / उज्जवला ज्योति तिग्गा

ज़िन्दगी भर रेंग घिसट कर कीड़े-मकोड़ों-सा जीवन जिया हर किसी के पैरों के तले रौंदे जाने के बावजूद हर बार तेज़ आँधियों में सिर उठाने की हिमाकत की और समय के तेज़ प्रवाह के ख़िलाफ़ स्थिर खड़े रहने की मूर्खता (जुर्रत) की और जीवन की टेढ़ी मेढ़ी उबड़ खाबड़ पगडंडियो पर रखते रहे / राह… Continue reading टिड्डियों सा दल बाँधे लौटेंगे वे / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जंगल चीता बन लौटेगा / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जंगल आख़िर कब तक ख़ामोश रहेगा कब तक अपनी पीड़ा के आग में झुलसते हुए भी अपने बेबस आँसुओं से हरियाली का स्वप्न सींचेगा और अपने अंतस में बसे हुए नन्हे से स्वर्ग में मगन रहेगा …. पर जंगल के आँसू इस बार व्यर्थ न बहेंगे जंगल का दर्द अब आग का दरिया बन फ़ूटेगा… Continue reading जंगल चीता बन लौटेगा / उज्जवला ज्योति तिग्गा

शिकारी दल अब आते हैं / उज्जवला ज्योति तिग्गा

शिकारी दल अब आते हैं खरगोशों का रूप धरे जंगलो में / और वहाँ रहने वाले शेर भालू और हाथी को अपनी सभाओं में बुलवाकर उन्हें पटाकर पट्टी पढ़ाकर समझाया / फ़ुसलाया कि / आख़िर औरों की तरह तरक्की उनका भी तो जन्मसिद्ध अधिकार है / कि क्या वे किसी से कम हैं / कि… Continue reading शिकारी दल अब आते हैं / उज्जवला ज्योति तिग्गा

उजाले से / उज्जवला ज्योति तिग्गा

अक्सर सुना है लोगो को शिकायत करते उजाले से भला क्या मिला हमें आज तक उजाले ने तो आकर हमारे सामने कर दी कितनी ही परेशानियाँ खड़ी भला किसे जरूरत है उजाले की अब जब अन्धेरों से ही काम चल जाता है अब और फिर अब तो आदत-सी हो गई है अन्धेरों की सीख लिया… Continue reading उजाले से / उज्जवला ज्योति तिग्गा

पानी का बुलबुला / उज्जवला ज्योति तिग्गा

मेरे आँसू हैं महज पानी का बुलबुला और मेरा दर्द सिर्फ़ मेरा दिमागी फ़ितूर उनके तमाम कोशिशों के बावजूद मेरे बचे रहने की ज़िद्द के सामने धराशायी हो जाते हैं उनके तमाम नुस्खे और मंसूबे अपने उन्हीं हत्यारों की ख़ुशी के लिए रोज़ हँसती हूँ गाती हूँ मैं जिन्हें सख़्त ऐतराज है मेरे वजूद तक… Continue reading पानी का बुलबुला / उज्जवला ज्योति तिग्गा

कन्फ़ेशन- मिय कल्पा…. / उज्जवला ज्योति तिग्गा

तो फ़िर बचता क्या है विकल्प सिवाय कहने के / मान लेने के / कि जी मंज़ूर है हमें / आपके सब आरोप शिरोधार्य है आपकी दी हर सज़ा जहाँ बांदी हो न्याय / सत्ता के दंड-विधान की जिसमें नित चढ़ती हो निर्दोषों की बलि दुष्ट / दोषी हो जाते हों बेदाग बरी गवाह /… Continue reading कन्फ़ेशन- मिय कल्पा…. / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जंगली घास / उज्जवला ज्योति तिग्गा

नहीं चलता है तुम्हारा या किसी का कोई भी नियम / कानून जंगली घास पर भले ही काट-छाँट लो घर / बगीचे की घास जो साँस लेती है तुम्हारे ही नियम कानून के अधीन … पर / बेतरतीब उबड़-खाबड़ उगती घास ढक देती है धरती की उघड़ी देह को अपने रूखे आँचल से और गुनगुनाती… Continue reading जंगली घास / उज्जवला ज्योति तिग्गा

बाँस की नन्ही-सी टहनी / उज्जवला ज्योति तिग्गा

जड़ों का सघन जाल रच देता है एक अद्भुत दुनिया ज़मीन के अंदर काफ़ी गहरे तक कोमल तंतुओं का जाल कि बाँस की नन्ही-सी टहनी सब कुछ भुलाकर खेलती रहती है आँख-मिचौली उन जड़ों के अनगिन तंतुओं के सूक्ष्म सिरों की भूलभूलैया में छिपकर उस अन्धेरी दुनिया में बरसो तक बग़ैर इस बात की चिंता… Continue reading बाँस की नन्ही-सी टहनी / उज्जवला ज्योति तिग्गा