रिजेक्टेड माल / उज्ज्वल भट्टाचार्य

कहीं कोई कमी रह गई थी सादी आंखों से पकड़ में भी नहीं आने वाली लेकिन वो एक्सपोर्ट के काबिल नहीं रह गया साहबों के चमचमाते शोकेस के बदले उसे जगह मिली फ़ुटपाथ पर अचानक वो लगभग हर किसी की पहुंच के अंदर आ गया बेचने वाले शातिर थे ख़रीदने वाले भी शातिर दोनों एक-दूसरे… Continue reading रिजेक्टेड माल / उज्ज्वल भट्टाचार्य

टिम्बकटू / उज्ज्वल भट्टाचार्य

मुझे मालूम है अफ़्रीका के किसी मुल्क में कोई शहर है नाम है टिम्बकटू वहां के लोग मुझसे कुछ अलग दिखते हैं उनकी भाषा अलग है जो मैं नहीं समझता वे भी मेरी भाषा नहीं समझते इन बाशिंदों के लिये टिम्बकटू अपना है मेरे लिये पराया है और इसीलिये मैं वहां होना चाहता हूं. लेकिन… Continue reading टिम्बकटू / उज्ज्वल भट्टाचार्य

बयाबां और बस्ती / उज्ज्वल भट्टाचार्य

मैंने सुना था बयाबां की सरहद पर शुरू होती है बस्ती जहां मिलते हैं अपने भी. मैंने बस्ती देखी और लेौट चला बयाबां की ओर.

पेरुमल मुरुगन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

शहर के चौक के बीच खड़े होकर उस शख़्स ने कहा : मुझे पता है धरती घूमती है घूमती रहेगी. मैं पेरुमल मुरुगन हूं. और मैं ज़िंदा हूं लेकिन मेरे अंदर का लेखक मर चुका है. मैं कुछ नहीं लिखूंगा, मैं कुछ नहीं बोलूंगा. पास खड़े दोस्त से मैंने पूछा : कौन है यह पेरुमल… Continue reading पेरुमल मुरुगन / उज्ज्वल भट्टाचार्य

हादसा / उज्ज्वल भट्टाचार्य

“राजीव चौक, कृपया दरवाज़ों से दूर हटकर खड़े हों.” मशीनी आवाज़ के बाद सारी भीड़ हरकत में आ जाती है. और तभी अचानक पूरे दम के साथ ट्रेन ब्रेक लगाती है, सब एक-दूसरे पर गिर पड़ते हैं, एक परेशानी का माहौल, कई मिनट तक दरवाज़े बंद ही रहते हैं, सारे लोग बेचैन हैं, फिर पता… Continue reading हादसा / उज्ज्वल भट्टाचार्य