फूल / एकांत श्रीवास्तव

सबसे सुन्‍दर फूल हैं वे जो फलों में बदल जाते हैं जो हमारी भूख को मिलते हैं अन्‍न की तरह और अभाव को जरूरत की अनेक चीजें बनकर इस मौसम में जैसे आमों के बौर जिनके आते ही कूकती है कोयल फलों का बचपन हैं ये फूल कल जब हम भूल जायेंगे फूलों को और… Continue reading फूल / एकांत श्रीवास्तव

सपने / एकांत श्रीवास्तव

सपने थकान भरी रात में जल-तरंग की तरह बजेंगे हमारी याञा में हिलेंगे पेड़ों की सघन पंक्ति की तरह सपने हजार-हजार पक्षियों के कंठ एक साथ खुलेंगे मौसम की चुप्‍पी के विरूद्ध हर बार सुस्‍ताते किसी पेड़ की घनी छाया में हम पियेंगे पृथ्‍वी के मीठे और ठंडे कुंड से सपनों का एक घूंट जल… Continue reading सपने / एकांत श्रीवास्तव

धान-गंध-2 / एकांत श्रीवास्तव

यहॉं इसी मौसम में लौटता है वसन्‍त जब कटता है धान और महक उठती है मिट्टी की देह इसी मौसम में फूलते हैं गेंदे के फूल गाती है मॉं लोरी और पीतल की जल भरी थाली में उतरता है चन्‍द्रमा उतार दो एक कमीज की तरह अपनी थकान गीत के जल में डुबो लो अपना… Continue reading धान-गंध-2 / एकांत श्रीवास्तव

धान-गंध-1 / एकांत श्रीवास्तव

वृक्षों की फुनगियों पर टॅंगी है एक झीनी-सी भोर चिडियों के झीने संगीत में डूबी हुई नींद से जाग रहे हैं घर और सिक्‍कों की तरह खनक रहे हैं वे आ रहे हैं बीडियॉं सुलगाते पगडंडियॉं नापते बैलों की टुनटुनाती घंटियों के साथ गहरी सॉंस खींचकर मन-प्राण में भरते सोंधी धान-गंध धूप में चमक रहे… Continue reading धान-गंध-1 / एकांत श्रीवास्तव

नाचा / एकांत श्रीवास्तव

नचकार आए हैं, नचकार आन गाँव के नाचा है आज गाँव में उमंग है तन-मन में सबके जल्‍दी राँध-खाकर भात-साग दौड़ी आती हैं लड़कियाँ औरतें, बच्‍चे और लोग इकट्ठे हैं धारण चौरा के पास आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की खूब रचेंगे होंठ सबके पान से खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात… Continue reading नाचा / एकांत श्रीवास्तव

मेले में / एकांत श्रीवास्तव

मेले में एकाएक उठती है रूलाई की इच्‍छा जब भीड़ एक दुकान से दूसरी दुकान एक चीज़ से दूसरी चीज़ और एक सर्कस से दूसरे तमाशे पर टूट रही होती है एक धूल की दीवार के उस पार साफ़-साफ़ दिखता है पन्‍द्रह बरस पहले का घर और माँ आज भी रखी है पन्‍द्रह बरस बाद… Continue reading मेले में / एकांत श्रीवास्तव

अन्न-2 / एकांत श्रीवास्तव

अन्न हैं हम मिट्टी की कोख से जन्मे बालियों में खिलते फूल हैं रस हैं धरती के सपनों के दूधिया रंग हैं हम हमें घूरती हैं कारतूस की आँखें हमें घेरती है बारूद की गंध हमें झपटते हैं गोदामों के हाथ और गाँव के रक्त में भीग जाते हैं हम गंध हैं हम जले हुए… Continue reading अन्न-2 / एकांत श्रीवास्तव

अन्न-1 / एकांत श्रीवास्तव

अन्‍न धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं और कटने से बहुत पहले पहुँच जाते हैं चुपके से किसान की नींद में कि देखो हम आ गए तुम्‍हारी तिथि और स्‍वागत की तैयारियों को ग़लत साबित करते अन्‍न अपने सपनों में कोई जगह नहीं देते गोदामों और मंडियों को अन्‍न धुलेंगे किसान की बिटिया के हाथों… Continue reading अन्न-1 / एकांत श्रीवास्तव

पानी की नींद / एकांत श्रीवास्तव

दो आदमी पार करते हैं सोन सॉंझ के झुटपुटे में तोड़कर पानी की नींद इस पार जंगल उस पार गाँव और बीच में सोन पार करते हैं दो आदमी गमछों में बॉंधकर करौंदे और जामुन कंधों पर कुल्‍हाडियॉं और सिरों पर लकडियॉं लिये लकडियॉं जो जलेंगी उनके घर और खुशी से फूलकर कुप्‍पा हो जाएँगी… Continue reading पानी की नींद / एकांत श्रीवास्तव

गाँव की आँख / एकांत श्रीवास्तव

भूखे-प्‍यासे धूल-मिट्टी में सने हम फुटपाथी बच्‍चे हुजूर, माई-बाप, सरकार हाथ जोड़ते हैं आपसे दस-पॉंच पैसे के लिए हों तो दे दीजिए न हों तो एक प्‍यार भरी नजर हम माँ की आँख के सूखे हुए आँसू हम पिता के सपनों के उड़े हुए रंग हम बहन की राखी के टूटे हुए धागे कई महीने… Continue reading गाँव की आँख / एकांत श्रीवास्तव