नाचा / एकांत श्रीवास्तव

नचकार आए हैं, नचकार
आन गाँव के
नाचा है आज गाँव में

उमंग है तन-मन में सबके
जल्‍दी राँध-खाकर भात-साग
दौड़ी आती हैं लड़कियाँ
औरतें, बच्‍चे और लोग इकट्ठे हैं
धारण चौरा के पास

आज खूब चलेगी दुकान बाबूलाल की
खूब रचेंगे होंठ सबके पान से
खूब फबेगी पान से रचे होंठों पर मदरस-सी बात

लड़कों के फिर मजे हैं, खड़े रहेंगे किनारे
एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखे
हँसते-छेड़ते एक-दूसरे को
कि अभी आएगी नचकारिन
उनके हाथों से लेने को रूपैया

और थिरकेगी जैसे दूध मोंगरा की पत्‍ती
लहराएगी जैसे बरखा की फुहार
डोलेगी जैसे पीपल का पत्‍ता
लहसेगी जैसे करन की डगाल
महकेगी जैसे मगरमस्‍त का फूल
चमकेगी जैसे बिजली
और गाज बनकर गिरेगी सबके मन पर

जब तक उग न जाए सुकवा
फूट न जाए पूरब में रक्तिम आलोक
तब तक गैसबत्‍ती और बिजली का
मिला-जुला उजाला रहेगा
मिले-जुले मन

उत्‍सव-सी बीतेगी रात
नाचा है आज गाँव में।

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