अन्न-2 / एकांत श्रीवास्तव

अन्न हैं हम
मिट्टी की कोख से जन्मे
बालियों में खिलते फूल हैं
रस हैं धरती के
सपनों के दूधिया रंग हैं हम

हमें घूरती हैं कारतूस की आँखें
हमें घेरती है बारूद की गंध
हमें झपटते हैं गोदामों के हाथ
और गाँव के रक्त में
भीग जाते हैं हम

गंध हैं हम जले हुए सपनों की
जड़ों की सिसकियाँ हैं नि:शब्द
चिड़ियों की आँखों का जल हैं हम ।

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