वसंत / एकांत श्रीवास्तव

वसंत आ रहा है जैसे माँण की सूखी छातियों में आ रहा हो दूध माघ की एक उदास दोपहरी में गेंदे के फूल की हँसी-सा वसंत आ रहा है वसंत का आना तुम्हारी आँखों में धान की सुनहली उजास का फैल जाना है काँस के फूलों से भरे हमारे सपनों के जंगल में रंगीन चिड़ियों… Continue reading वसंत / एकांत श्रीवास्तव

भाई का चेहरा-1 / एकांत श्रीवास्तव

एक धुंध के पार उभरता है भाई का चेहरा हवा में, अग्नि में, जल में, धरती में, आकाश में शामिल होता हुआ भाई देखता होगा आख़िरी बार मुझे पलटकर अनंत की चौखट के भीतर जाने से पहले ओ भाई मेरे मैं यहीं से करता हूँ विदा यहीं से हिलाता हूँ हाथ देखते-देखते झुलस रहा होगा… Continue reading भाई का चेहरा-1 / एकांत श्रीवास्तव

भाई की चिट्ठी / एकांत श्रीवास्तव

हर पंक्ति जैसे फूलों की क्यारी है जिसमें छुपे काँटों को वह नहीं जानता वह नहीं जानता कि दो शब्दों के बीच भयंकर साँपों की फुँफकार है और डोल रही है वहाँ यम की परछाईं उसने लिखी होगी यह चिट्ठी धानी धूप में हेमंत की यह जाने बिना कि जब यह पहुँचेगी गंतव्य तक भद्रा… Continue reading भाई की चिट्ठी / एकांत श्रीवास्तव

विस्थापन / एकांत श्रीवास्तव

मैं बहुत दूर से उड़कर आया पत्ता हूं यहां की हवाओं में भटकता यहां के समुद्र, पहाड़ और वृक्षों के लिए अपरिचित, अजान, अजनबी जैसे दूर से आती हैं समुद्री हवाएं दूर से आते हैं प्रवासी पक्षी सुदूर अरण्य से आती है गंध प्राचीन पुष्प की मैं दूर से उड़कर आया पत्ता हूं तपा हूं… Continue reading विस्थापन / एकांत श्रीवास्तव

विरुद्ध कथा / एकांत श्रीवास्तव

पहले भाव पैदा हुए फिर शब्द फिर उन शब्दों को गानेवाले कंठ फिर उन कंठों को दबानेवाले हाथ पहले सूर्य पैदा हुआ फिर धरती फिर उस धरती को बसानेवाले जन फिर उन जनों को सतानेवाला तंत्र पहले पत्थर पैदा हुए फिर आग फिर उस आग को बचानेवाले अलाव फिर उन अलावों को बुझानेवाला इंद्र जो… Continue reading विरुद्ध कथा / एकांत श्रीवास्तव

ख़ून की कमी / एकांत श्रीवास्तव

टीकाटीक दोपहर में भरी सड़क चक्कर खा कर गिरती है रुकमनी ख़ून की कमी है कहते हैं डाक्टर क्या करे रुकमनी ख़ुद को देखे कि तीन बच्चों को पति ख़ुद मरीज़ खाँसता हुआ खींचता रिक्शा आठ-आठ घरॊं में झाड़ू-बरतन करती रुकमनी चक्करघिन्नी-सी काटती चक्कर बच्चों का मुँह देखती है तो सूख जाता है उसका ख़ून… Continue reading ख़ून की कमी / एकांत श्रीवास्तव

नोट गिनने वाली मशीन / एकांत श्रीवास्तव

ऎसी कोई मशीन नहीं जो सपने गिन सके सपने जो धरती पर फैल जाते हैं जैसे बीज हों फूलों के ऎसी कोई मशीन नहीं जो गिन सके इच्छाओं को उस प्रत्येक कम्पन को जो अन्याय और यातना के विरोध में पैदा होता है दहशत पैदा करती है नोटॊं की फड़फड़ाहट कोई पीता है चांदी के… Continue reading नोट गिनने वाली मशीन / एकांत श्रीवास्तव

नहीं आने के लिए कहकर / एकांत श्रीवास्तव

नहीं आने के लिए कह कर जाऊंगा और फिर आ जाऊंगा पवन से, पानी से, पहाड़ से कहूंगा– नहीं आऊंगा दोस्तों से कहूंगा और ऎसे हाथ मिलाऊंगा जैसे आख़िरी बार कविता से कहूंगा– विदा और उसका शब्द बन जाऊंगा आकाश से कहूंगा और मेघ बन जाऊंगा तारा टूटकर नहीं जुड़ता मैं जुड़ जाऊंगा फूल मुरझा… Continue reading नहीं आने के लिए कहकर / एकांत श्रीवास्तव

लोहा / एकांत श्रीवास्तव

जंग लगा लोहा पांव में चुभता है तो मैं टिटनेस का इंजेक्शन लगवाता हूँ लोहे से बचने के लिए नहीं उसके जंग के संक्रमण से बचने के लिए मैं तो बचाकर रखना चाहता हूँ उस लोहे को जो मेरे खून में है जीने के लिए इस संसार में रोज़ लोहा लेना पड़ता है एक लोहा… Continue reading लोहा / एकांत श्रीवास्तव

रास्ता काटना / एकांत श्रीवास्तव

भाई जब काम पर निकलते हैं तब उनका रास्ता काटती हैं बहनें बेटियाँ रास्ता काटती हैं काम पर जाते पिताओं का शुभ होता है स्त्रियों का यों रास्ता काटना सूर्य जब पूरब से निकलता होगा तो नीहारिकाएँ काटती होंगी उसका रास्ता ऋतुएँ बार-बार काटती हैं इस धरती का रास्ता कि वह सदाबहार रहे पानी गिरता… Continue reading रास्ता काटना / एकांत श्रीवास्तव