पिछली रात टूटे हुए स्वप्न के आघात से आरम्भ होते हैं खाली दिन कैलेण्डर में कोई नाम नहीं होता खाली दिनों का न सोम न मंगल कोई तारीख नहीं होती खाली दिनों की न दस न सञह बिना अंगूठे वाली चप्पल की तरह घिसटते रहते हैं खाली दिन हमारे साथ-साथ हम घड़ी देखते हैं और… Continue reading खाली दिन / एकांत श्रीवास्तव
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पीठ / एकांत श्रीवास्तव
यह एक पीठ है काली चट्टान की तरह चौड़ी और मजबूत इस पर दागी गयीं अनगिनत सलाखें इस पर बरसाये गये हजार-हजार कोड़े इस पर ढोया गया इतिहास का सबसे ज्यादा बोझ यह एक झुकी हुई डाल है पेड़ की तरह उठ खड़ी होने को आतुर.
बोलना / एकांत श्रीवास्तव
बोले हम पहली बार अपने दुःखों को जुबान देते हुए जैसे जन्म के तत्काल बाद बोलता है बच्चा पत्थर हिल उठे कि बोले हम सदियों के गूंगे लोग पहली बार हमने जाना बोलना हमें लगा हम अभी-अभी पैदा हुए हैं.
दंगे के बाद / एकांत श्रीवास्तव
एक नुचा हुआ फूल है यह शहर जिसे रौंद गये हैं आततायी एक तड़का हुआ आईना जिसमें कोई चेहरा साफ-साफ दिखायी नहीं देता यह शहर लाखों-लाख कंठों में एक रूकी हुई रूलाई है एक सूखा हुआ आंसू एक उड़ा हुआ रंग एक रौंदा हुआ जंगल है यह शहर दंगे के बाद आग और धुएं के… Continue reading दंगे के बाद / एकांत श्रीवास्तव
अन्तर्देशीय / एकांत श्रीवास्तव
धूप में नहाया एक नीला आकाश तुमने मुझे भेजा अब इन झिलमिलाते तारों का क्या करूँ मैं जो तैरने लगे हैं चुपके से मेरे अंधेरों में क्या करूँ इन परिन्दों का तुम्हारे अन्तर्देशीय से निकलकर जो उड़ने लगे हैं मेरे चारों तरफ़ तुम्हारे न चाहने के बावजूद तारों और परिन्दों के साथ चुपचाप चले आए… Continue reading अन्तर्देशीय / एकांत श्रीवास्तव
प्यार का शोक-गीत / एकांत श्रीवास्तव
इतने सारे तारे हैं और आकाश के रंग में घुली है एक तारे के टूट जाने की उदासी इतने सारे फूल हैं और पौधे की जड़ों में बसा है एक फूल के झड़ जाने का दर्द जिस तरह रंग और ख़ुशबू को जुदा करके हम फूल को नहीं कह सकते फूल मैं कैसे कह सकूंगा… Continue reading प्यार का शोक-गीत / एकांत श्रीवास्तव
बारहमासा / एकांत श्रीवास्तव
तुम हो कि चैत-बैशाख की धूल भरी याञा में मीठे जल की कोई नदी या जेठ की दोपहरी में नस-नस जुड़ाती आम्रवन की ठंडक तुम हो कि पत्तियों के कानों में आषाढ़ की पहली फुहार का संगीत या धरती की आत्मा में सावन-भादों का हरापन तुम हो कि कंवार का एक दिन कांस-फूल-सा उमगा है… Continue reading बारहमासा / एकांत श्रीवास्तव
बहनें-2 / एकांत श्रीवास्तव
बहनें घर-भर में सुगंध की तरह व्याप्त हैं एक दिन उड़ जाएंगी जाने किन पवन झकोरों के साथ रह जाएगा तेज़ धूप में भी हमारी कमीज़ों पर उनके हाथों कढ़े फूल का सबसे प्यारा रंग रह जाएंगी बर्तनों में उनकी गीली स्मृतियाँ और तह किए कपड़ों में उनके हाथों की तरतीब पहला कौर उठाते ही… Continue reading बहनें-2 / एकांत श्रीवास्तव
बहनें-1 / एकांत श्रीवास्तव
बहनें घुटनों पर सिर रखे बैठी हैं पोखर के जल में एक साँवली साँझ की तरह काँपती है घर की याद खूँटियों पर टंगी होंगी भाइयों की कमीज़ें आंगन में फूले होंगे गेंदे के फूल रसोई में खट रही होगी माँ सोचती हैं बहनें क्या वे होंगी उस घर की स्मृति में एक ओस भीगा… Continue reading बहनें-1 / एकांत श्रीवास्तव
माँ की आँखें / एकांत श्रीवास्तव
यहां सोयी हैं दो आंखें गहरी नींद में मैं अपने फूल-दिनों को यहां रखकर लौट जाऊंगा लेकिन लौट जाने के बाद भी हमें देखेंगी ये आंखें हम जहां भी तोड़ रहे होंगे अपने समय की सबसे सख्त चट्टान जब हम बेहद थके होंगे और अकेले ये आंखें हमें देंगी अपनी ममता की खुशबू ये आंखें… Continue reading माँ की आँखें / एकांत श्रीवास्तव