बहनें-2 / एकांत श्रीवास्तव

बहनें घर-भर में
सुगंध की तरह व्याप्त हैं
एक दिन उड़ जाएंगी
जाने किन पवन झकोरों के साथ

रह जाएगा तेज़ धूप में भी
हमारी कमीज़ों पर
उनके हाथों कढ़े फूल का
सबसे प्यारा रंग

रह जाएंगी बर्तनों में
उनकी गीली स्मृतियाँ
और तह किए कपड़ों में
उनके हाथों की तरतीब

पहला कौर उठाते ही
नमक और अचार की तरह
याद आएंगी बहनें

उस दिन वे
हमारी आँखों में डबडबाएंगी
उस दिन बहनें हमें बहुत याद आएंगी ।

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