वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते हम भी ग़ैरों की तरह आप को प्यारे होते वक़्त करता जो वफ़ा … अपनी तक़दीर में पहले ही कूछ तो ग़म हैं और कुछ आप की फ़ितरत में वफ़ा भी कम है वरन जीती हुई बाज़ी तो ना हारे होते वक़्त करता जो वफ़ा … हम भी… Continue reading वक़्त करता जो वफ़ा / इंदीवर
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चंदन सा बदन चंचल चितवन / इंदीवर
चंदन सा बदन चंचल चितवन धीरे से तेरा ये मुस्काना मुझे दोष न देना जग वालों – (२) हो जाऊँ अगर मैं दीवाना चंदन सा … ये काम कमान भँवे तेरी पलकों के किनारे कजरारे माथे पर सिंदूरी सूरज होंठों पे दहकते अंगारे साया भी जो तेरा पड़ जाए – (२) आबाद हो दिल का… Continue reading चंदन सा बदन चंचल चितवन / इंदीवर
होंठों से छू लो तुम / इंदीवर
होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो बन जाओ मीत मेरे, मेरी प्रीत अमर कर दो न उमर की सीमा हो, न जनम का हो बंधन जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन नई रीत चलाकर तुम, ये रीत अमर कर दो होंठों से छूलो तुम … जग ने छीना मुझसे,… Continue reading होंठों से छू लो तुम / इंदीवर
नए नज़ारे / इंदिरा परमार
नए साल के नए नज़ारे! घर से निकलो, बाहर आओ कदम मिलाकर नाचो-गाओ, पहला दिन है नए साल का आसमान में खूब उड़ाओ- भैया खुशियों के गुब्बारे! जो भी मिले प्यार बरसाओ रूठा हो तो उसे मनाओ, अगला-पिछला बैर भुलाकर बढ़ो साथियो, हाथ मिलाओ- रिश्ते फले फलें हमारे! हम बच्चों का यह कहना है हमको… Continue reading नए नज़ारे / इंदिरा परमार
सूरज दादा / इंदिरा गौड़
तुम बिन चले न जग का काम, सूरज दादा राम राम! लादे हुए धूप की गठरी चलें रात भर पटरी-पटरी, माँ खाने को रखती होगी शक्कर पारे, लड्डू, मठरी। तुम मंजिल पर ही दम लेते, करते नहीं तनिक आराम! कभी नहीं करते हो देरी दिन भर रोज लगाते फेरी मुफ्त बाँटते धूप सभी को- कभी… Continue reading सूरज दादा / इंदिरा गौड़
माँ, किसने संसार बसाया / इंदिरा गौड़
माँ, किसने यह फूल खिलाया? बेटा, जिसने परियाँ, तितली- खुशबू, सौरभ और पवन को। नागफनी को चुभन सौंप दी, पतझड़ और बहार चमन को। है यह सभी उसी की माया, उसने ही यह फूल खिलाया। माँ, किसने आकाश बनाया? बेटा, जिसने सूरज, चंदा- धूप, चाँदनी और सितारे। बादल बिजली इंद्रधनुष के रंग अनोखे प्यारे-प्यारे। खुद… Continue reading माँ, किसने संसार बसाया / इंदिरा गौड़
दादी वाला गाँव / इंदिरा गौड़
पापा याद बहुत आता है मुझको दादी वाला गाँव, दिन-दिन भर घूमना खेत में वह भी बिल्कुल नंगे पाँव। मम्मी थीं बीमार इसी से पिछले साल नहीं जा पाए, आमों का मौसम था फिर भी छककर आम नहीं खा पाए। वहाँ न कोई रोक टोक है दिन भर खेलो मौज मनाओ, चाहे किसी खेत में… Continue reading दादी वाला गाँव / इंदिरा गौड़
बादल भैया / इंदिरा गौड़
बादल भैया, बादल भैया, बड़े घुमक्कड़ बादल भैया! आदत पाई है सैलानी कभी किसी की बात न मानी, कड़के बिजली जरा जोर से- आँखों में भर लाते पानी। कभी-कभी इतना रोते हो भर जाते हैं ताल-तलैया! सूरज, चंदा और सितारे, सबके सब तुमसे हैं हारे, तुम जब आ जाते अपनी पर डरकर छिप जाते बेचारे।… Continue reading बादल भैया / इंदिरा गौड़
घुमक्कड़ चिड़िया / इंदिरा गौड़
अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर, कुछ तो आखिर पता चले कब जाती है अपने घर। रोज-रोज घर में आती पर अनबूझ पहेली-सी फिर भी जाने क्यों लगती अपनी सगी सहेली-सी। कितना अच्छा लगता जब- मुझे ताकती टुकर-टुकर! आँखें, गरदन मटकाती साथ लिए चिड़ियों का दल चौके में घुस धीरे-से लेकर गई दाल-चावल।… Continue reading घुमक्कड़ चिड़िया / इंदिरा गौड़
ता-ता थैया / आचार्य अज्ञात
उड़े झील से बगुले राजा मछली लगी बजाने बाजा, पेट पीटकर मेढक भैया लगे नाचने ता-ता थैया।