सूरज दादा / इंदिरा गौड़

तुम बिन चले न जग का काम, सूरज दादा राम राम! लादे हुए धूप की गठरी चलें रात भर पटरी-पटरी, माँ खाने को रखती होगी शक्कर पारे, लड्डू, मठरी। तुम मंजिल पर ही दम लेते, करते नहीं तनिक आराम! कभी नहीं करते हो देरी दिन भर रोज लगाते फेरी मुफ्त बाँटते धूप सभी को- कभी… Continue reading सूरज दादा / इंदिरा गौड़

माँ, किसने संसार बसाया / इंदिरा गौड़

माँ, किसने यह फूल खिलाया? बेटा, जिसने परियाँ, तितली- खुशबू, सौरभ और पवन को। नागफनी को चुभन सौंप दी, पतझड़ और बहार चमन को। है यह सभी उसी की माया, उसने ही यह फूल खिलाया। माँ, किसने आकाश बनाया? बेटा, जिसने सूरज, चंदा- धूप, चाँदनी और सितारे। बादल बिजली इंद्रधनुष के रंग अनोखे प्यारे-प्यारे। खुद… Continue reading माँ, किसने संसार बसाया / इंदिरा गौड़

दादी वाला गाँव / इंदिरा गौड़

पापा याद बहुत आता है मुझको दादी वाला गाँव, दिन-दिन भर घूमना खेत में वह भी बिल्कुल नंगे पाँव। मम्मी थीं बीमार इसी से पिछले साल नहीं जा पाए, आमों का मौसम था फिर भी छककर आम नहीं खा पाए। वहाँ न कोई रोक टोक है दिन भर खेलो मौज मनाओ, चाहे किसी खेत में… Continue reading दादी वाला गाँव / इंदिरा गौड़

बादल भैया / इंदिरा गौड़

बादल भैया, बादल भैया, बड़े घुमक्कड़ बादल भैया! आदत पाई है सैलानी कभी किसी की बात न मानी, कड़के बिजली जरा जोर से- आँखों में भर लाते पानी। कभी-कभी इतना रोते हो भर जाते हैं ताल-तलैया! सूरज, चंदा और सितारे, सबके सब तुमसे हैं हारे, तुम जब आ जाते अपनी पर डरकर छिप जाते बेचारे।… Continue reading बादल भैया / इंदिरा गौड़

घुमक्कड़ चिड़िया / इंदिरा गौड़

अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर, कुछ तो आखिर पता चले कब जाती है अपने घर। रोज-रोज घर में आती पर अनबूझ पहेली-सी फिर भी जाने क्यों लगती अपनी सगी सहेली-सी। कितना अच्छा लगता जब- मुझे ताकती टुकर-टुकर! आँखें, गरदन मटकाती साथ लिए चिड़ियों का दल चौके में घुस धीरे-से लेकर गई दाल-चावल।… Continue reading घुमक्कड़ चिड़िया / इंदिरा गौड़