ग़म से बिखरा न पैमाल हुआ मैं तो ग़म से ही बे-मिसाल हुआ वक़्त गुज़रा तो मौजा-ए-गुल था वक़्त ठहरा तो माह ओ साल हुआ हम गए जिस शजर के साए में उस के गिरने का एहतिमाल हुआ बस कि वहशत थी कार-ए-दुनिया से कुछ भी हासिल न हस्ब-ए-हाल हुआ सुन के ईरान के नए… Continue reading ग़म से बिखरा न पैमाल हुआ / हसन ‘नईम’
कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए / हसन आबिदी
कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए घर बाहर के रास्तों में हैं शजर टूटे हुए लुट गया दिन का असासा और बाक़ी रह गए शाम की दहलीज़ पर लाल ओ गोहर टूटे हुए याद-ए-याराँ दिल में आई हुक बन कर रह गई जैसे इक ज़ख़्मी परिंदा जिस के पर टूटे हुए रात है… Continue reading कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए / हसन आबिदी
दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा / हसन आबिदी
दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा उफ़ुक़-ए-दर्द से सीने में उजाला उतरा रात आई तो अँधेरे का समंदर उमड़ा चाँद निकला तो समंदर में सफ़ीना उतरा पहले इक याद सी आई ख़लिश जाँ बन कर फिर ये नश्तर रग-ए-एहसास में गहरा उतरा जल चुके ख़्वाब तो सर नामा-ए-ताबीर खुला बुझ गई आँख… Continue reading दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा / हसन आबिदी
हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ / हसन अब्बास रजा
हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ दूर से स्प का सदक़ा बाँटें हाथ न आएँ परियाँ राह में हाएल क़ाफ़-पहाड़ और हाथ चराग़ से ख़ाली क्यूँकर जुनूँ-चंगुल से हम छुड़वाएँ परियाँ आशाओं की सोहनी सहरी सच सजाए रक्खूँ जाने कौन घड़ी मेरे घर में आने बराजें परियाँ सारे शहर को चाँदनी की… Continue reading हम परियों के चाहने वाले ख़्वाब में देखें परियाँ / हसन अब्बास रजा
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दुश्ना मिल जाएगा / हसन अब्बास रजा
दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दुश्ना मिल जाएगा ज़िंदानों को तोड़ निकलने का रस्ता मिल जाएगा शाह-सवार के कट जाने का दुख तो हमें भी है लेकिन तुम परचम थामे रखना सालार-सिप्पा मिल जाएगा हमें ख़बर थी शहर-ए-पनाह पर खड़ी सिपाह मुनाफ़िक़ है हमें यक़ीं था नक़ब-ज़नों से ये दस्ता मिल जाएगा सोच-कमान… Continue reading दुश्मन को ज़द पर आ जाने दो दुश्ना मिल जाएगा / हसन अब्बास रजा
नानी की नाव / हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय
नाव चली, नानी की नाव चली, नीना की नानी की नाव चली! लंबे सफ़र पे आओ चलो, भागे चलो जागो चलो, आओ, आओ! नाव चली, नानी की नाव चली, नीना की नानी की नाव चली! सामान घर से निकाले गए, नानी के घर से निकाले गए, इधर से उधर से निकाले गए, नानी की नाव… Continue reading नानी की नाव / हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय
प्रयास / हरे राम सिंह
एक उदास शाम भी हो जाती है स्वर्णिम अनवरत संघर्ष के बाद दिख जाती है – दूर कहीं झीनी-सी सम्भावनाएँ जुगनू-सा आलोक सुप्त-सी चिंगारी, आओ, संघर्ष की फूँक से उसे भभका दें। रात अभी हुई नहीं मंज़िल नज़दीक है।
कर्त्तव्य / हरे राम सिंह
अभी तू यहीं कहीं थी – पास में और लुटा रही थी अपने नीले गले से रस माधुरी। मैं सावधान सिपाही चौकस संगीन ताने दुश्मन की टोह ले रहा था कि तू नज़रों के सामने झिलमिला उठी। तेरी आँखों के तिलों पर नज़रें थिर कर जैसे ही- तुझे चूमने को बढ़ा कि एक कड़कती हुई… Continue reading कर्त्तव्य / हरे राम सिंह
पूछो तो / हरे प्रकाश उपाध्याय
कब तक मौन रहोगे विवादी समय में यह पूछना बहुत ज़रूरी है पूछो तो अब यह पूछो कि पानी में अब कितना पानी है आग में कितनी आग आकाश अब भी कितना आकाश है पूछो तो यह पूछो कि कितना बह गया है भागीरथी में पानी कितना बचा है हिमालय में पूछो कि नदियों का… Continue reading पूछो तो / हरे प्रकाश उपाध्याय
वर्तमान परिदृश्य में / हरे प्रकाश उपाध्याय
वर्तमान परिदृश्य में यह जो वर्तमान है ताजमहल की ऐतिहासिकता को चुनौती देता हुआ इसके परिदृश्य में कुछ सड़कें हैं काली -कलूटी एक -दूसरे को रौंदकर पार जाती बालू से भरी नदी बह रही है पानी है , मगर मटमैला कुछ साँप हैं फन काढे़ हुए कुछ नेवले मरे पड़े हैं जाने कितना खून बिखरा… Continue reading वर्तमान परिदृश्य में / हरे प्रकाश उपाध्याय