कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए / हसन आबिदी

कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए घर बाहर के रास्तों में हैं शजर टूटे हुए लुट गया दिन का असासा और बाक़ी रह गए शाम की दहलीज़ पर लाल ओ गोहर टूटे हुए याद-ए-याराँ दिल में आई हुक बन कर रह गई जैसे इक ज़ख़्मी परिंदा जिस के पर टूटे हुए रात है… Continue reading कौन देखे मेरी शाख़ों के समर टूटे हुए / हसन आबिदी

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा / हसन आबिदी

दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा उफ़ुक़-ए-दर्द से सीने में उजाला उतरा रात आई तो अँधेरे का समंदर उमड़ा चाँद निकला तो समंदर में सफ़ीना उतरा पहले इक याद सी आई ख़लिश जाँ बन कर फिर ये नश्तर रग-ए-एहसास में गहरा उतरा जल चुके ख़्वाब तो सर नामा-ए-ताबीर खुला बुझ गई आँख… Continue reading दिल की दहलीज़ पे जब शाम का साया उतरा / हसन आबिदी