आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते, पहला सा वो होल नही होता अब फ़स्ल-ए-बहार नहीं आती और रंज ओ मलाल नहीं होता इस अक़्ल की मारी नगरी में कभी पानी आग नहीं बनता यहाँ इश्क़ भी लोग नहीं करते, यहाँ कोई कमाल नहीं होता हम आज बहुत ही परीशाँ हैं, इस वक़्त के फेर से… Continue reading आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते, पहला सा वो होल नही होता / हिलाल फ़रीद
अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो / हिमायत अली ‘शाएर’
अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो फिर हैं बर्क़ की नज़रें सूए आश्याँ यारो अबन कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई जाने काफ़िला भटके अब कहाँ कहाँ यारो फूल हैं कि लाशें हैं बाग़ है कि म़कतल है शाख़ शाख़ होता है दार का गुमाँ यारो मौत से गुज़र कर ये कैसी ज़िंदगी पाई… Continue reading अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो / हिमायत अली ‘शाएर’
आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना / हिमायत अली ‘शाएर’
आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना और फ़िर इक डूबते सूरज का मंज़र देखना शाम हो जाए तो दिन का ग़म मनाने के लिए एक शोला सा मुनव्वर अपने अंदर देखना रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना अपने क़द को अपने साए से भी कम-तर देखना संग-ए-मंज़िल इस्तिआरा संग-ए-मरक़द का न… Continue reading आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना / हिमायत अली ‘शाएर’
आँखों से आँसू बह आया, तेरी याद आ गयी होगी / हिमांशु पाण्डेय
आँखों से आँसू बह आया, तेरी याद आ गयी होगी । घबराना मत यह आँसू ही कल मोती बन कर आयेंगे विरह ताप में यह आँसू ही मन को शीतल कर जायेंगे, शायद यह आँसू ही पथ हों महामिलन के महारास का – इस चिंतन से सच कह दूँ ,पलकों पर बाढ़ आ गयी होगी,… Continue reading आँखों से आँसू बह आया, तेरी याद आ गयी होगी / हिमांशु पाण्डेय
क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो? / हिमांशु पाण्डेय
नीरवता के सांध्य शिविर में आकुलता के गहन रूप में उर में बस जाया करते हो । बोलो प्रियतम क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो ? आज सृष्टि का प्रेय नहीं हिय में बसता है मिले हाथ से हाथ यही जग का रिश्ता है अब कौन कहाँ किसके दिल में बैठा करता… Continue reading क्यों रह रह कर याद मुझे आया करते हो? / हिमांशु पाण्डेय
मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान
मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था ये एक चाल थी उन की ये इक बहाना था न दर्द था न ख़लिश न तिलमिलाना था किसी का इश्क न था वो भी क्या ज़माना था खुली जो आँख तो सय्याद के कफस में खुली न बाग़ था न चमन था न आशियाना था मिरे… Continue reading मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान
दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान
दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया इक मुझ से क्या जहाँ से बेगाना हो गया क़ासिद को ये मिला मिरे पैग़ाम का जवाब तू भी हमारी राय में दीवाना हो गया देखा जो उन को बाम पे ग़श आ गया मुझे ताज़ा कलीम ओ तूर का अफ़साना हो गया हाँ हाँ तुम्हारे हुस्न की कोई… Continue reading दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ / हातिम शाह
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ आईना हो के जा के लग अब दिलरूबा के हाथ पैग़ाम दर्द-ए-दिल का मिरे ग़ुंचा-लब सती पहुँचा सकेगा कौन मगर दूँ सबा के हाथ मैं अब गिला जहाँ में बेगानों सीं क्या करूँ जीना हुआ मुहाल मुझे आश्ना के हाथ देना नहीं है शीशा-ए-दिल संग-दिल… Continue reading ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ / हातिम शाह
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिसू ने पिया तो क्या / हातिम शाह
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिसू ने पिया तो क्या मानिंद-ए-ख़िज्र जग में अकेला जिया तो क्या शीरीं-लबाँ सीं संग-दिलों को असर नहीं फ़रहाद काम कोह-कनी का किया तो क्या जलना लगन में शम्अ-सिफ़त सख़्त काम है परवाना जूँ शिताब अबस जी दिया तो क्या नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद जर्राह… Continue reading आब-ए-हयात जा के किसू ने पिसू ने पिया तो क्या / हातिम शाह
ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल ‘हस्ती’
ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोयी हुई चीज़ें क़रीने से सजा कर रख ज़रा बिखरी हुई चीज़ें कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायब और महंगी हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी… Continue reading ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल ‘हस्ती’