मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान

मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था ये एक चाल थी उन की ये इक बहाना था न दर्द था न ख़लिश न तिलमिलाना था किसी का इश्‍क न था वो भी क्या ज़माना था खुली जो आँख तो सय्याद के कफस में खुली न बाग़ था न चमन था न आशियाना था मिरे… Continue reading मुझे फरेब-ए-वफा दे के दम में लाना था / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान

दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान

दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया इक मुझ से क्या जहाँ से बेगाना हो गया क़ासिद को ये मिला मिरे पैग़ाम का जवाब तू भी हमारी राय में दीवाना हो गया देखा जो उन को बाम पे ग़श आ गया मुझे ताज़ा कलीम ओ तूर का अफ़साना हो गया हाँ हाँ तुम्हारे हुस्न की कोई… Continue reading दिल फ़ुकर्त-ए-हबीब में दीवाना हो गया / ‘हिज्र’ नाज़िम अली खान