सड़क बुहारती हुई औरत / हेमन्त प्रसाद दीक्षित

सड़क बुहारती हुई औरत जानती है कहा-कहाँ हैं गड्ढे कहाँ-कहाँ पड़ा है कीचड़ कहाँ-कहाँ छितरे हैं सड़े पत्ते कहाँ-कहाँ बहाया गया है कुन्ती-पुत्र कहाँ-कहाँ है फिसलन कहाँ-कहाँ बिखरे हैं निरोध और कहाँ-कहाँ थूक गया है सनातन धर्म सड़क बुहारती हुई औरत कई हज़ार साल गन्दगी के ख़िलाफ़ / छेड़ती है आन्दोलन और सुस्ताने के लिए… Continue reading सड़क बुहारती हुई औरत / हेमन्त प्रसाद दीक्षित

नन्हा स्वावलम्बन / हेमन्त देवलेकर

(सोई गोली के लिए) अंगूठा मुंह में दुबका है तू गाढ़ी नींद में खोई है नींद तुझे ले गई है एक सूनसान टापू पर जहां तेरे सिवा नहीं है कोई और उस वीरान एकाकीपन में यही अंगूठा तेरे मुंह में घुुल-घुल कर मीठा-मीठा दूध बनाता है तुझे पिलाता है सच कहूँ तेरे मुँह में दुबका… Continue reading नन्हा स्वावलम्बन / हेमन्त देवलेकर

बाल कबीले का लोकगीत / हेमन्त देवलेकर

(बच्चे जो अभी भाषा नहीं जानते, ध्वनि से हुलसते हैं, उनके लिये) टुईयाँ गुईयाँ ढेम्पूलाकी चुईयाँ बेंगी पुंगी चिक्कुल भाकी नक थुन धाकी भुईयाँ अब दु़न भेला ठुन ठुन केला बीन भनक्कम पुईयाँ हगनू पटला झपड़ तो बटला शुकमत टमटम ठुईयाँ गझगन चिम्बू छुकछु़न लिम्बू झलबुल टोला ढुईयाँ टुईयाँ गुईयाँ किंचुल गोला मुईयाँ।

बच्चे / हेमन्त जोशी

बच्चों पर दो कविताएँ एक प्यार तो करते हैं हम सभी बच्चों को छोटे होते हैं जब बच्चे करते हैं हम उन सभी को प्यार दिखते हैं सबके सब सुंदर। कल जब ये बड़े होंगे मारे जाएंगे किसी न किसी वाद की आड़ में मारे जाएंगे अपनी वजह से अपनी नस्ल, अपनी जाति बतलाने के… Continue reading बच्चे / हेमन्त जोशी

उनकी पराजय / हेमन्त जोशी

वे खुश हैं कि समाजवाद पराजित हो रहा है मैं खुश हूँ कि आदमी में अभी लड़ने का हौसला बाक़ी है वे कहते हैं कहाँ है तुम्हारी कविता में छंद कहाँ है तुक कहाँ है लय लय-तुक-छंद मैं नहीं जानता कहाँ करता हूँ मैं कविता मैं तो जीता हूँ स्वच्छंद बोलता जाता हूँ निर्बंध। मेरे… Continue reading उनकी पराजय / हेमन्त जोशी

मिट्टी की कविता / हेमन्त कुकरेती

मिट्टी को पानी ही पत्थर बनाता है पानी में भीगकर ही वह होता है कोमल सम्भव है आग के भीतर बूँद की उपस्थिति आकाश में पृथ्वी का जीवन तितलियाँ कितने युगों से रंगों की काँपती हुई चुप्पी को ढो रही हैं अपनी काया पर फूल किसके प्रेम की यातना में सुगलते हैं और जाने किसकी… Continue reading मिट्टी की कविता / हेमन्त कुकरेती

आँख / हेमन्त कुकरेती

देखने के लिए नज़र चाहिए ठीक हो दूर और पास की तो कहना ही क्या बाज़ार को दूर से देखने पर भी लगता है डर मेरा घर तो बाज़ार के इतने पास है कि उजड़ी हुई दुकान नज़र आता है ठेठ पड़ोस का घर हो जाता है सुदूर का गृह चीख़ता है कि उसकी कक्षा… Continue reading आँख / हेमन्त कुकरेती

रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का / हेंसन रेहानी

रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का हुस्न आईना बना है दर्द की तस्वीर का एक अर्सा हो गया फ़रहाद को गुज़ारे हुए आओ फिर ताज़ा करें अफ़्साना जू-ए-शीर का गुलसिताँ का ज़र्रा ज़र्रा जाग उठे अंदलीब लुत्फ़ है इस वक़्त तेरे नाला-ए-शब-गीर का लीजिए ऐ शैख़ पहले अपने ईमाँ की ख़बर दीजिए… Continue reading रंग ये है अब हमारे इश्क़ की तासीर का / हेंसन रेहानी

हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए / हेंसन रेहानी

हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए इंसाँ अगर हो दीद-ए-बीना लिए हुए कैफ़-ए-निगाह सहर-ए-बयाँ मस्ती-ए-ख़िराम हम आए उन की बज़्म से क्या क्या लिए हुए नक़्श-ओ-निगार-ए-दहर की रानाइयाँ पूछ दर-पर्दा हैं किसी का सरापा लिए हुए बे-लाग मैं गुज़र गया हर ख़ूब ओ ज़िश्त से अपनी नज़र में शौक़-ए-तमाशा लिए हुए राह-ए-हयात में… Continue reading हर ज़र्रा है जमाल की दुनिया लिए हुए / हेंसन रेहानी

आज सौदाए मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है / हेंसन रेहानी

आज सौदाए मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है काम बे-कार जवानों का ग़ज़ल-ख़्वानी है ग़म की तकमील का सामान हुआ है पैदा लाइक़-ए-फख़्र मेरी बे-सर-ओ-सामानी है संग ओ आहन तो बनने आईने उन की ख़ातिर दिल न आईना बना सख़्त ये हैरानी है मुझे से इस दर्जा ख़फ़ा क्यूँ हो कोई पर्दा-नशीं आरज़ू दीद की जब… Continue reading आज सौदाए मोहब्बत की ये अर्ज़ानी है / हेंसन रेहानी