सूने घर में / सत्यनारायण

सूने घर में कोने-कोने मकड़ी बुनती जाल अम्मा बिन आँगन सूना है बाबा बिन दालान चिट्ठी आई है बहिना की साँसत में है जान, नित-नित नए तगादे भेजे बहिना की ससुराल । भ‍इया तो परदेश विराजे कौन करे अब चेत साहू के खाते में बंधक है बीघा भर खेत, शायद कुर्की ज़ब्ती भी हो जाए… Continue reading सूने घर में / सत्यनारायण

नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण

कहाँ ढूँढ़ें– नदी-सा बहता हुआ दिन । वह गगन भर धूप सेनुर और सोना, धार का दरपन भँवर का फूल होना, हाँ, किनारों से कथा कहता हुआ दिन ! सूर्य का हर रोज़ नंगे पाँव चलना घाटियों में हवा का कपड़े बदलना, ओस कुहरा, घाम सब सहता हुआ दिन ! कौन देगा मोरपंख से लिखे… Continue reading नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण

मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

जय जय भारतमातु मही। द्रोण, भीम, भीषम की जननी, जग मधि पूज्य रही।। जाकें भव्य विशाल भाल पै, हिम मय मुकुट विराजै। सुवरण ज्योति जाल निज कर सों, तिहँ शोभा रवि साजै।। श्रवत जासु प्रेमाश्रु पुंज सों, गंग-जमुन कौ बारी। पद-पंकज प्रक्षालत जलनिहि, नित निज भाग सँवारी।। चारु चरण नख कान्ति जासु लहि यहि जग… Continue reading मातॄवंदना-2 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

मातॄवंदना-1 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

सब मिलि पूजिय भारत-माई। भुवि विश्रुत, सद‍वीर-प्रसूता, सरल सदय सुखदाई।। बाकी निर्मल कीर्ति कौमुदी, छिटकी चहुँ दिशि छाई। कलित केन्द्र आरज-निवास की, वेद पुरानन गाई।। आर्य-अनार्य सरस चाखत जिह, प्रेम भाव रुचिराई। अस जननी पूजन हित धावहु, वेला जनि कढ़ि जाई।। सुभट सपूत, अकूत साहसी, आरजपूत कहाई। मातृभक्त सुप्रसिद्ध जगत मधि, प्रिय प्रताप प्रकटाई।। क्यों… Continue reading मातॄवंदना-1 / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

प्यारे चंदा मामा / सत्यदेव आजाद

प्यारे चंदा मामा, आओ! सारे नभ में घूमा करते हर घर को तुम देखा करते अगर न आओ, तो हमको ही- इक दिन अपना घर दिखलाओ प्यारे चंदा मामा, आओ! सबकी मम्मी के हो भाई बस यह बात समझ न आई, मामा का यह कैसा रिश्ता? कभी बैठ करके समझाओ। प्यारे चंदा मामा, आओ! टिम-टिम… Continue reading प्यारे चंदा मामा / सत्यदेव आजाद

बेबसी के तंग घेरे की तरह / सत्य मोहन वर्मा

बेबसी के तंग घेरे की तरह घुट रहा है दम अँधेरे की तरह. खो गया रब मज़हबों की भीड़ में सोन चिड़िया के बसेरे की तरह. वायदों की करिश्माई बीन पर वो नाचता है सपेरे की तरह. ज़िन्दगी के रास्तों पर ताक में वक़्त बैठा है लुटेरे की तरह. धुप से रोशन इरादों के लिए… Continue reading बेबसी के तंग घेरे की तरह / सत्य मोहन वर्मा

दधीचि पिता / सत्य मोहन वर्मा

जब तक तुम्हारी ममतामयी काया थी मेरे सर पर वट – वृक्ष की छाया थी जिसके तले मैंने अपनापन, अवज्ञा और आक्रोश अत्यंत सहजता से जिए आज अपने अभिशप्त जन्मदिन पर तुम्हारी अस्थियां संचित करते हुए मन करता है इनसे वज्र बना लूँ सांसारिक भयावहता से लड़ने के लिए किन्तु दधीचि- पिता अस्थियां ही क्यों… Continue reading दधीचि पिता / सत्य मोहन वर्मा

मिस्टर मोती / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ

आधे गोरे आधे काले, आए मिस्टर मोती, एक टाँग में पहन पजामा, एक टाँग में धोती। एक पैर में जूता पहने, एक पैर में मौजा, एक हाथ में रोटी पकड़े, एक हाथ में गोज़ा। एक बाँह में अचकन डाले, एक बाँह में कोट, रोकर माँगे मक्खन-बिस्कुट, हँस माँगे अखरोट। कंधे पर तो पड़ा जनेऊ, मगर… Continue reading मिस्टर मोती / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ

एक कहानी / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ

सुनी सुनाई या मनमानी, कहो कहानी, तुम्हें सुनानी, जोर-जोर से कही कहानी। ‘हूँ हूँ’ होवे अहो कहानी, चुप-चुप, चुप-चुप सुनो कहानी। पोदा रानी, पोदा रानी, चूल्हे की थी वह दौरानी। एक रोज की तुम सुन पाओ, कान इधर को अपना लाओ। चूल्हे में जब आग जल रही धधक-धधककर धूँ, कान इधर को अपना लाओ काना-बाती… Continue reading एक कहानी / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ

साग पकाया / सत्य प्रकाश कुलश्रेष्ठ

बंदर गया खेत में भाग, चुट्टर-मुट्टर तोड़ा साग। आग जला कर चट्टर-मट्टर, साग पकाया खद्दर-बद्दर। सापड़-सूपड़ खाया खूब, पोंछा मु हूँह उखाड़ कर दूब। चलनी बिछा, ओढ़कर सूप, डटकर सोए बंदर भूप!