बेबसी के तंग घेरे की तरह / सत्य मोहन वर्मा

बेबसी के तंग घेरे की तरह घुट रहा है दम अँधेरे की तरह. खो गया रब मज़हबों की भीड़ में सोन चिड़िया के बसेरे की तरह. वायदों की करिश्माई बीन पर वो नाचता है सपेरे की तरह. ज़िन्दगी के रास्तों पर ताक में वक़्त बैठा है लुटेरे की तरह. धुप से रोशन इरादों के लिए… Continue reading बेबसी के तंग घेरे की तरह / सत्य मोहन वर्मा

दधीचि पिता / सत्य मोहन वर्मा

जब तक तुम्हारी ममतामयी काया थी मेरे सर पर वट – वृक्ष की छाया थी जिसके तले मैंने अपनापन, अवज्ञा और आक्रोश अत्यंत सहजता से जिए आज अपने अभिशप्त जन्मदिन पर तुम्हारी अस्थियां संचित करते हुए मन करता है इनसे वज्र बना लूँ सांसारिक भयावहता से लड़ने के लिए किन्तु दधीचि- पिता अस्थियां ही क्यों… Continue reading दधीचि पिता / सत्य मोहन वर्मा