देखेगा कौन ? / शंभुनाथ सिंह

बगिया में नाचेगा मोर, देखेगा कौन? तुम बिन ओ मेरे चितचोर, देखेगा कौन? नदिया का यह नीला जल, रेतीला घाट, झाऊ की झुरमुट के बीच, यह सूनी बाट, रह-रह कर उठती हिलकोर, देखेगा कौन? आँखड़ियों से झरते लोर, देखेगा कौन? बौने ढाकों का यह वन, लपटों के फूल, पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल, बौराये… Continue reading देखेगा कौन ? / शंभुनाथ सिंह

समय की शिला पर / शंभुनाथ सिंह

समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा… Continue reading समय की शिला पर / शंभुनाथ सिंह

शरमाता चाँद / शंभुनाथ तिवारी

कई दिनों में आता चाँद, आते ही शरमाता चाँद। बाँसों के झुरमुट में लुक-छिप, मंद-मंद मुसकाता चाँद। पिछवाड़े खिड़की से छिपकर, आँगन में घुस आता चाँद। घर-आँगन या दूर देश हो, नजर एक ही आता चाँद। गली-गली में रात-रात भर, फेरी घूम लगाता चाँद। सफर रात का करने वालों, का साथी बन जाता चाँद। वादा… Continue reading शरमाता चाँद / शंभुनाथ तिवारी

आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना

आ री निंदिया, आ री निंदिया, सपने भर-भर ला री निंदिया। सोता है भैया पलने में, तारों को दे जा री निंदिया। प्यारी निंदिया, प्यारी निंदिया, चंदा को संग ला री निंदिया। मुन्ना के फुलके गालों पर, फूलों की छवि प्यारी निंदिया। ओ री ऐसी-वैसी निंदिया, तेरी ऐसी-तैसी निंदिया। है तू निपट अनारी निंदिया, ओ… Continue reading आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना

खिड़की / शंभुदयाल सक्सेना

खिड़की है मकान की आँख, लेते सभी उसी से झाँक। आता जब कोई इस ओर, खिड़की तब कर देती शोर। अगर जाननी हो यह बात, कहाँ जाएँगे पापा प्रात! तो बैठो खिड़की को खोल, देती पीट भेद का ढोल। माँ के मंदिर की यदि राह, तुम्हें जानने की हो चाह। खिड़की में बैठो चुपचाप, बतला… Continue reading खिड़की / शंभुदयाल सक्सेना

सड़क / शंभुदयाल सक्सेना

कोई कहीं गया था जिस दिन, जन्म लिया था मैंने उस दिन अब भी जहाँ कहीं जो जाता, मुझको अपना साथी पाता! बाजारों में जाती हूँ मैं, दरवाजों तक आती हूँ मैं! नगरों में घर-घर मेरा है निर्जन वन मेरा डेरा है! सभी पहाड़ों पर चढ़ आई, सभी घाटियों से कढ़ आई! ऊँचे, नीचे, साफ,… Continue reading सड़क / शंभुदयाल सक्सेना

घड़ी / शंकरानंद

सब कुछ इसके सामने होता है इसका टिकटिकाना देर तक गूँजता है यही इसकी पुकार है चुप्पी में यही इसका विरोध सब कुछ देखने वाली घड़ी कभी गवाही नहीं देती ।

बल्ब / शंकरानंद

इतनी बड़ी दुनिया है कि एक कोने में बल्ब जलता है तो दूसरा कोना अन्धेरे में डूब जाता है एक हाथ अन्धेरे में हिलता है तो दूूसरा चमकता है रोशनी में कभी भी पूरी दुनिया एक साथ उजाले का मुँह नहीं देख पाती एक तरफ़ रोने की आवाज़ गूँजती है तो दूसरी तरफ़ कहकहे लगते… Continue reading बल्ब / शंकरानंद

काश्मीर के प्रति – द्वितीयसर्ग/ शंकरलाल चतुर्वेदी ‘सुधाकर’

जननीजन्म-भूमितोहोतीहैदिवसेभीबढ़कर | उससेजोप्रेमनहींकरता, वहहृदयनहींसमझोपत्थर ||१|| वहपराधीनहोकरभयसे, दुःखजनितअश्रुगणस्त्रवतीहो | नितदुष्टविदेशीपदलुष्ठित, रहरहकरआंहेंभरतीहो ||२|| निजसंस्कृति, भाषा, भाव, अर्थ, होतेविलुप्तवहलखतीहो | भयखाकरअत्याचारसहे, बलिपशुसीपशुतासहतीहो ||३|| सुखभोगेपुत्ररंगाअरिरंग, निजसंस्कृति,भाषा, कोखोता | वहपुत्रनहींनालायकहै, सैंवरकंटककृषिकोबोता ||४|| ऐसीमाँसेवन्ध्याअच्छी,नि: पुत्रसमझहोतीप्रसन्न | निजपतिसेकरुणयाचनाकर, होमुक्तसद्यहोतीप्रसन्न ||५|| जिनकीमातापरनरवशहो, जिनकीभूमिपरहस्तगता | वेभारसदृशइसपृथ्वीपर,जीवितहीहैवेनिहता ||६|| गाँधीगुरुतिलकगोखलेनेयहसोचसुदृढ़संग्रामरचा | भारतहा-रतहोगयानिरत, पूरबपश्चिमकुहराममचा||७|| मोतीकेलालजवाहरने, जोतेरीनिधिकानवलरत्न | भारतमाँबंधनभंजनका, तनमनधनसेकरदियायत्न ||८|| पंद्रहअगस्तसेंतालिसमें, भारतप्रखंडदोखंडबने | नापाकपाकजिन्नाखातिर, पूरबपश्चिमकेखंडबने ||९|| हर्षाम्बुधिउमड़चलाजनमें,… Continue reading काश्मीर के प्रति – द्वितीयसर्ग/ शंकरलाल चतुर्वेदी ‘सुधाकर’

काश्मीर के प्रति – प्रथमसर्ग/ शंकरलाल चतुर्वेदी ‘सुधाकर’

ओहिंदवीरकेउच्चभाल,किन्नरियोंकेपावन, सुदेश | तेरीमहिमाकाअमितगान,करसकतेक्यासारदगणेश ||१|| सौन्दर्यसलिलसरवरहैतू,नरनलिनजहाँसर्वत्रखिले | मधुकरीकिन्नरीवारचुकी , मधु -रसलेकरमनमुक्तभले ||२|| पर्वतपयस्विनीपादपगन , पुष्पावलिपावनविविधरंग | आभूषितकलितमृदुलमधुमय , प्रकृतिवनिताकेविविधरंग ||३|| केसरकलकंजविहारिणहो , वरप्रकृतिपद्मनीवामबनी | नरकीक्यागणनाहैजिसपर , मोहितहोतेसुरयक्षमुनि ||४|| तेरीकलकंजकलीकेसर , बादामदामसीफुलवारी | फलफुल्ल–फूलमधुमयमेवा , निर्झरप्रपातहिममयवारी ||५|| भारतमाताकातूललाट , पृथ्वीकानंदनसाकानन | अथवातूभारतभामिनिका , मंजुलमयंकसाहैआनन ||६|| कुछतीव्रत्वरितगतिसेबहती , इठलातीसीइतरातीसी | नववधूवितस्तातवहियपर , कलकलिकासीकलपातीसी ||७|| उसमेंकंजादिकविविधपुष्प , मानोबहुदीपसुहातेहैं… Continue reading काश्मीर के प्रति – प्रथमसर्ग/ शंकरलाल चतुर्वेदी ‘सुधाकर’