आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना

आ री निंदिया, आ री निंदिया, सपने भर-भर ला री निंदिया। सोता है भैया पलने में, तारों को दे जा री निंदिया। प्यारी निंदिया, प्यारी निंदिया, चंदा को संग ला री निंदिया। मुन्ना के फुलके गालों पर, फूलों की छवि प्यारी निंदिया। ओ री ऐसी-वैसी निंदिया, तेरी ऐसी-तैसी निंदिया। है तू निपट अनारी निंदिया, ओ… Continue reading आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना

खिड़की / शंभुदयाल सक्सेना

खिड़की है मकान की आँख, लेते सभी उसी से झाँक। आता जब कोई इस ओर, खिड़की तब कर देती शोर। अगर जाननी हो यह बात, कहाँ जाएँगे पापा प्रात! तो बैठो खिड़की को खोल, देती पीट भेद का ढोल। माँ के मंदिर की यदि राह, तुम्हें जानने की हो चाह। खिड़की में बैठो चुपचाप, बतला… Continue reading खिड़की / शंभुदयाल सक्सेना

सड़क / शंभुदयाल सक्सेना

कोई कहीं गया था जिस दिन, जन्म लिया था मैंने उस दिन अब भी जहाँ कहीं जो जाता, मुझको अपना साथी पाता! बाजारों में जाती हूँ मैं, दरवाजों तक आती हूँ मैं! नगरों में घर-घर मेरा है निर्जन वन मेरा डेरा है! सभी पहाड़ों पर चढ़ आई, सभी घाटियों से कढ़ आई! ऊँचे, नीचे, साफ,… Continue reading सड़क / शंभुदयाल सक्सेना