बगिया में नाचेगा मोर, देखेगा कौन? तुम बिन ओ मेरे चितचोर, देखेगा कौन? नदिया का यह नीला जल, रेतीला घाट, झाऊ की झुरमुट के बीच, यह सूनी बाट, रह-रह कर उठती हिलकोर, देखेगा कौन? आँखड़ियों से झरते लोर, देखेगा कौन? बौने ढाकों का यह वन, लपटों के फूल, पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल, बौराये… Continue reading देखेगा कौन ? / शंभुनाथ सिंह
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समय की शिला पर / शंभुनाथ सिंह
समय की शिला पर मधुर चित्र कितने किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए। किसी ने लिखी आँसुओं से कहानी किसी ने पढ़ा किन्तु दो बूँद पानी इसी में गए बीत दिन ज़िन्दगी के गई घुल जवानी, गई मिट निशानी। विकल सिन्धु के साध के मेघ कितने धरा ने उठाए, गगन ने गिराए। शलभ ने शिखा… Continue reading समय की शिला पर / शंभुनाथ सिंह