घड़ी / शंकरानंद

सब कुछ इसके सामने होता है इसका टिकटिकाना देर तक गूँजता है यही इसकी पुकार है चुप्पी में यही इसका विरोध सब कुछ देखने वाली घड़ी कभी गवाही नहीं देती ।

बल्ब / शंकरानंद

इतनी बड़ी दुनिया है कि एक कोने में बल्ब जलता है तो दूसरा कोना अन्धेरे में डूब जाता है एक हाथ अन्धेरे में हिलता है तो दूूसरा चमकता है रोशनी में कभी भी पूरी दुनिया एक साथ उजाले का मुँह नहीं देख पाती एक तरफ़ रोने की आवाज़ गूँजती है तो दूसरी तरफ़ कहकहे लगते… Continue reading बल्ब / शंकरानंद