लड़की का इतिहास / बलदेव वंशी

हर बाग़ का एक इतिहास होता है जैसे- इस बाग़ का भी अपना एक इतिहास है हर व्यक्ति का एक इतिहास होता है जैसे इस लड़की का भी अपना एक इतिहास है हर लड़की एक बाग़ होती है जैसे इस लड़की का भी अपना एक बाग़ है सबसे पहले यह एक लड़की है जो बाग़… Continue reading लड़की का इतिहास / बलदेव वंशी

सूर्योदय-पूर्व / बलदेव वंशी

अछोर अंधकार सघन,ऊपर हिल्लौलता हूकता हुंकारता जल नीचे,फेनिल सागर तट पर… अचानक, अंगार रेखा दिख गई लो ! अग्नि के ओभ-विलास की अनु-लिपि सहसा लिख गई ! अंगार रेखा दिख गई…

समन्दर में सफ़र के वक़्त कोई नाव जब उलटी / बलजीत सिंह मुन्तज़िर

समन्दर में सफ़र के वक़्त कोई नाव जब उलटी । तो उस दम लोग कहते हैं नहीं मौजों की कुछ ग़लती । तुफ़ानी हाल तो केवल कभी बरसों में बनते हैं, शकिस्ता[1] कश्तियाँ तो ठहरे पानी में नहीं चलती । करे उस पल में कोई क्या उदू[2] जब ना-ख़ुदा[3] ठहरे, मुसाफ़िर की तो हसरत[4] ख़ुद… Continue reading समन्दर में सफ़र के वक़्त कोई नाव जब उलटी / बलजीत सिंह मुन्तज़िर

ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र हो गए / बलजीत सिंह मुन्तज़िर

ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र[1] हो गए । बे-सरोसामाँ[2] तो थे ही, अब तो बेघर हो गए । तुमसे मिलने पर बड़े आशुफ़्तासर[3] थे उन दिनों, तुमसे बिछड़े तो हमारे दर्द बेहतर हो गए । एक क़तरे[4] भर की आँखों में थी उनकी हैसियत, अश्क[5] जब पलकों से निकले तो समन्दर हो गए । कितनी… Continue reading ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र हो गए / बलजीत सिंह मुन्तज़िर

दोहे / बनज कुमार ‘बनज’

रहे शारदा शीश पर, दे मुझको वरदान। गीत, गजल, दोहे लिखूँ, मधुर सुनाऊँ गान। हंस सवारी हाथ में, वीणा की झंकार, वर दे माँ मैं कर सकूँ, गीतों का शृंगार। माँ शब्दों में तुम रहो, मेरी इतनी चाह, पल-पल दिखलाती रहो, मुझे सृजन की राह। माँ तेरी हो साधना, इस जीवन का मोल, तू मुझको… Continue reading दोहे / बनज कुमार ‘बनज’

मत होना उदास / बद्रीनारायण

कुछ जून ने बुना कुछ जुलाई ने नदी ने थोड़ा साथ दिया थोड़ा पहाड़ ने बुनने में रस्सी मूँज की। प्रभु की प्रभुताई बाँधी जाएगी यम की चतुराई हाथी का बल सोने-चाँदी का छल बाँधा जाएगा बाँधा जाएगा विषधर का विष कुछ पाप बाँधा जाएगा कुछ झूठ बाँधा जाएगा रीति तुम चुप रहना नीति मत… Continue reading मत होना उदास / बद्रीनारायण

प्रेमपत्र / बद्रीनारायण

प्रेत आएगा किताब से निकाल ले जायेगा प्रेमपत्र गिद्ध उसे पहाड़ पर नोच-नोच खायेगा चोर आयेगा तो प्रेमपत्र ही चुरायेगा जुआरी प्रेमपत्र ही दाँव लगाएगा ऋषि आयेंगे तो दान में माँगेंगे प्रेमपत्र बारिश आयेगी तो प्रेमपत्र ही गलाएगी आग आयेगी तो जलाएगी प्रेमपत्र बंदिशें प्रेमपत्र पर ही लगाई जाएँगी साँप आएगा तो डसेगा प्रेमपत्र झींगुर… Continue reading प्रेमपत्र / बद्रीनारायण

फागुन और फाग / प्रेमघन

फागुन तौ बालक विनोद हित अहै उजागर। ज्यों ज्यों होली निकट होत अधिकात अधिक तर॥ सजत पिच्चुका अरु पिचकारी तथा रचत रंग। नर नारिन पैं ताहि चलावत बालक गन संग॥ गावत और बजावत बीतत समय सबै तब। भाँति भाँति के स्वाँग बनावत मिलि बालक सब॥ हँसी दिल्लगी गाली रंग गुलाल उड़त भल। देवर भौजाइन के… Continue reading फागुन और फाग / प्रेमघन

जाड़काल की क्रीड़ा / प्रेमघन

जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत। कोऊ मड़ई मैं बालक गन कौड़ा बिरचत॥ विविध बतकही मैं तपता अधिकाधिक बारत। जाकी बढ़िके लपट छानि अरु छप्पर जारत॥ कोलाहल अति मचत भजत तब सब बालक गन। लोग बुझावत आगि होय उद्विग्न खिन्न मन॥ खोजत अरु जाँचत को है अपराधी बालक। पै कछु पता न चलत… Continue reading जाड़काल की क्रीड़ा / प्रेमघन

आई चिड़िया आले आई / बंधुरत्न

आई चिड़िया आले आई, आई चिड़िया बाल आई! चूँ-चूँ करती चिड़िया आई, दाब चोंच में दाना लाई। दाना आया, पानी आया, माटी ने मिल बीज उगाया। धरती में जड़ लगी फैलने, ऊपरफैल गई बिरवाई। चिड़िया कहती दाना मेरा, मुन्ना कहता ना-ना मेरा। बादल कहता सींचा मैंने, तीनों में छिड़ गई लड़ाई। पौधा बोला, तुम सब… Continue reading आई चिड़िया आले आई / बंधुरत्न