फागुन और फाग / प्रेमघन

फागुन तौ बालक विनोद हित अहै उजागर। ज्यों ज्यों होली निकट होत अधिकात अधिक तर॥ सजत पिच्चुका अरु पिचकारी तथा रचत रंग। नर नारिन पैं ताहि चलावत बालक गन संग॥ गावत और बजावत बीतत समय सबै तब। भाँति भाँति के स्वाँग बनावत मिलि बालक सब॥ हँसी दिल्लगी गाली रंग गुलाल उड़त भल। देवर भौजाइन के… Continue reading फागुन और फाग / प्रेमघन

जाड़काल की क्रीड़ा / प्रेमघन

जाड़न मैं लखि सब कोउन कहँ तपते तापत। कोऊ मड़ई मैं बालक गन कौड़ा बिरचत॥ विविध बतकही मैं तपता अधिकाधिक बारत। जाकी बढ़िके लपट छानि अरु छप्पर जारत॥ कोलाहल अति मचत भजत तब सब बालक गन। लोग बुझावत आगि होय उद्विग्न खिन्न मन॥ खोजत अरु जाँचत को है अपराधी बालक। पै कछु पता न चलत… Continue reading जाड़काल की क्रीड़ा / प्रेमघन