अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से दिल नहीं होगा तो बैअत नहीं होगी हम से रोज़ इक ताज़ा क़सीदा नई तश्बीब के साथ रिज़्क़ बर-हक़ है ये ख़िदमत नहीं होगी हम से दिल के माबूद जबीनों के ख़ुदाई से अलग ऐसे आलम में इबादत नहीं होगी हम से उजरत-ए-इश्क़ वफ़ा है तो हम ऐसे… Continue reading अब भी तौहीन-ए-इताअत नहीं होगी हम से / इफ़्तिख़ार आरिफ़
उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते / इन्दु श्रीवास्तव
उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते सरे बाज़ार हम रुसवा हुए बाज़ार के चलते तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते ग़लत रस्ते में हो तुम और… Continue reading उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते / इन्दु श्रीवास्तव
कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं / इन्दु श्रीवास्तव
कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं कि इस दुनिया में तुमको हम से बेहतर कौन समझेगा हमीं इक हैं तुम्हारे साथ जो हर हाल में ख़ुश हैं नहीं तो इस ज़रा सी छाँव को घर कौन समझेगा बग़ीचा बाग़वाँ की याद में दिन-रात रोता है मेरे पेड़ों को अब बेटों से… Continue reading कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं / इन्दु श्रीवास्तव
सूरज / इन्दु जैन
अपने ही ताप से पिघला बरस गया आग की फुहार-सा सूरज दहकते कोलतार पर भागते नंगे पैरों को पता ही नहीं चला मोटर सवार ने कहा पैदल चलो तो लू नहीं लगती ! नंगे पैर ने नहीं सुना– वर्ना कभी भी वो मोटर और लू से बदल लेता रोज़-रोज़ जी पाने की भट्टी पर सिकता… Continue reading सूरज / इन्दु जैन
मौसम / इन्दु जैन
ये कैसा मौसम है कि छाँह देने वाले पेड़ की शहतीरों से कमरे में ख़ून टपकने लगा कि कविता पुरस्कृत होते ही मेरी अपनी नज़रों में ख़ुद पर प्रश्नचिन्ह लग गया ।
अभी से कैसे कहूँ तुम को बे-वफ़ा साहब / इन्दिरा वर्मा
अभी से कैसे कहूँ तुम को बे-वफ़ा साहब अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुम को हुज़ूर जान-ए-वफ़ा और हम-नवा साहब तुम्हारी याद में तारे शुमार करती हूँ न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम हमारे प्यार… Continue reading अभी से कैसे कहूँ तुम को बे-वफ़ा साहब / इन्दिरा वर्मा
आज फिर चाँद उस ने माँगा है / इन्दिरा वर्मा
आज फिर चाँद उस ने माँगा है चाँद का दाग़ फिर छुपाना है चाँद का हुस्न तो है ला-सानी फिर भी कितना फ़लक पे तन्हा है काश कुछ और माँगता मुझ से चाँद ख़ुद गर्दिशों का मारा है दूर है चाँद इस ज़मीं से बहुत फिर भी हर शब तवाफ़ करता है बस्तियों से निकल… Continue reading आज फिर चाँद उस ने माँगा है / इन्दिरा वर्मा
चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है कभी आँखें भर आती हैं कभी जी डूब जाता है कहो क्यूँकर न फिर होवेगा दिल रौशन ज़ुलेख़ा का जहाँ यूसुफ़ सा नूर-ए-दीदा-ए-याक़ूब जाता है जहाँ के ख़ूब-रू मुझ से चुराएँ क्यूँ न फिर आँखें जो कोई ख़ुर्शीद को देखे सो वो महजूब जाता है… Continue reading चला आँखों में जब कश्ती में वो महबूब आता है / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते जो हम भी छूट जाते अब तो क्या दीवाना-पन करते तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रूख़्सत नहीं देता जो टुक दम मार सकते हम तो कुछ फ़िक्र-ए-सुख़न करते नहीं जूँ पंजा-ए-गुल कुछ भी इन हाथों में गीराई वगरना ये गरेबाँ नज़्र-ए-ख़ूबान-ए-चमन करते मुसाफ़िर हो के आए हैं जहाँ… Continue reading बहार आई है क्या क्या चाक जैब-ए-पैरहन करते / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
आपसे जब सामना होने लगा / इकराम राजस्थानी
आपसे जब सामना होने लगा, ज़िन्दगी में क्या से क्या होने लगा। चैन मिलता है तड़पने से हमें, दर्द ही दिल की दवा होने लगा। ज़िन्दगी की राह मुश्किल हो गई, हर क़दम पर हादसा होने लगा। दोस्तों से दोस्ती की बात पर, फ़ासला दर फ़ासला होने लगा। जो ग़जल में शेर बनकर के रहा,… Continue reading आपसे जब सामना होने लगा / इकराम राजस्थानी