उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते / इन्दु श्रीवास्तव

उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते सरे बाज़ार हम रुसवा हुए बाज़ार के चलते तेरे रहमोकरम पे जो अंधेरे तलघरों में थे यक़ीनन रोशनी में आ गए अख़बार के चलते ज़मीनी साज़िशों के और ऊपर की सियासत के मुसलसल बीच में पिसते रहे घर-बार के चलते ग़लत रस्ते में हो तुम और… Continue reading उधारी व्याज के चलते बखत की मार के चलते / इन्दु श्रीवास्तव

कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं / इन्दु श्रीवास्तव

कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं कि इस दुनिया में तुमको हम से बेहतर कौन समझेगा हमीं इक हैं तुम्हारे साथ जो हर हाल में ख़ुश हैं नहीं तो इस ज़रा सी छाँव को घर कौन समझेगा बग़ीचा बाग़वाँ की याद में दिन-रात रोता है मेरे पेड़ों को अब बेटों से… Continue reading कहो या न कहो दिल में तुम्हारे लाख बातें हैं / इन्दु श्रीवास्तव