खोलिए आँख तो मंज़र है नया और बहुत / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

खोलिए आँख तो मंज़र है नया और बहुत तू भी क्या कुछ है मगर तेरे सिवा और बहुत जो खता की है जज़ा खूब ही पायी उसकी जो अभी की ही नहीं, उसकी सज़ा और बहुत खूब दीवार दिखाई है ये मज़बूरी की यही काफी है बहाने न बना, और बहुत सर सलामत है तो… Continue reading खोलिए आँख तो मंज़र है नया और बहुत / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको कर गया तुन्द हवाओं के हवाले मुझ को मैं वो बुत हूँ कि तेरी याद मुझे पूजती है फिर भी डर है ये कहीं तोड़ न डाले मुझको मैं यहीं हूँ इसी वीराने का इक हिस्सा हूँ जो जरा शौक से ढूढ़ें वही पा ले मुझको

कोई सूरत निकलती क्यों नहीं है / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

कोई सूरत निकलती क्यों नहीं है यहाँ हालत बदलती क्यों नहीं है ये बुझता क्यों नहीं है उनका सूरज हमारी शमअ जलती क्यों नहीं है अगर हम झेल ही बैठे हैं इसको तो फिर ये रात ढलती क्यों नहीं है मुहब्बत सर को चढ़ जाती है, अक्सर मेरे दिल में मचलती क्यों नहीं है

जिस्म जो चाहता है, उससे जुदा लगती हो / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

जिस्म जो चाहता है, उससे जुदा लगती हो सीनरी हो मगर आँखों को सदा लगती हो सर पे आ जाये तो भर जाए धुंआ साँसों में दूर से देखते रहिये तो घटा लगती हो ऐसी तलवार अँधेरे में चलाई जाए कि कहीं चाहते हों, और कहीं लगती हो

रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

रात फिर आएगी, फिर ज़ेहन के दरवाज़े पर कोई मेहँदी में रचे हाथ से दस्तक देगा धूप है, साया नहीं आँख के सहरा में कहीं दीद का काफिला आया तो कहाँ ठहरेगा आहट आते ही निगाहों को झुका लो कि उसे देख लोगे तो लिपटने को भी जी चाहेगा

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला ग़ज़ाल-ए-अश्क सर-ए-सुब्ह दूब-ए-मिज़गाँ पर कब आँख अपनी खुली और लहू लहू न मिला चमकते चाँद भी थे शहर-ए-शब के ऐवाँ में निगार-ए-ग़म सा मगर कोई शम्मा-रू न मिला उन्ही की रम्ज़ चली है गली गली में… Continue reading यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले जिसे ग़ुबार समझते थे कारवाँ वाले मैं अपनी धुन में यहाँ आँधियाँ उठाता हूँ मगर कहाँ वो मज़े ख़ाक-ए-आशियाँ वाले मुझे दिया न कभी मेरे दुश्मनों का पता मुझे हवा से लड़ाते रहे जहाँ वाले मेरे सराब-ए-तमन्ना पे रश्क था जिन को बने हैं आज वही बहर-ए-बे-कराँ वाले… Continue reading उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग लेता हूँ तकल्लुफ़-बर-तरफ़ प्यासा हूँ पानी माँग लेता हूँ सवाल-ए-वस्ल करता हूँ के चमकाऊँ लहू दिल का मैं अपना रंग भरने को कहानी माँग लेता हूँ ये क्या अहल-ए-हवस की तरह हर शय माँगते रहना के मैं तो सिर्फ़ उस की मेहरबानी माँग लेता हूँ वो सैर-ए-सुब्ह… Continue reading मिलूँ उस से तो मिलने की निशानी माँग / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं गोया के तमाम हो गया मैं एहसास की आग से गुज़र कर कुछ और भी ख़ाम हो गया मैं दीवार-ए-हवा पे लिख गया वो यूँ नक़्श-ए-दवाम हो गया मैं पत्थर के पाँव धो रहा था पानी का पयाम हो गया मैं उड़ता हुआ अक्स देखते ही फैला हुआ दाम हो गया… Continue reading मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने मेरी सदा के फूल बिखर मेरे सामने आख़िर वो आरज़ू मेरे सर पर सवार थी लाए थे जिस को ख़ाक-ब-सर मेरे सामने कहते नहीं हैं उस का सुख़न मेरे आस पास देते नहीं हैं उस की ख़बर मेरे सामने आगे बढ़ूँ तो ज़र्द घटा मेरे रू-बा-रू पीछे मुड़ूँ… Continue reading मैं भी शरीक-ए-मर्ग हूँ मर मेरे सामने / ‘ज़फ़र’ इक़बाल