जिस्म जो चाहता है, उससे जुदा लगती हो / ‘ज़फ़र’ इक़बाल

जिस्म जो चाहता है, उससे जुदा लगती हो
सीनरी हो मगर आँखों को सदा लगती हो

सर पे आ जाये तो भर जाए धुंआ साँसों में
दूर से देखते रहिये तो घटा लगती हो

ऐसी तलवार अँधेरे में चलाई जाए
कि कहीं चाहते हों, और कहीं लगती हो

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