यदि सज्जन दीन दुखी बन जाँय नहीं घटता पर गौरव है। मणि कीचड़ में गिर जाय परंतु निरादर हो कब संभव है॥ खल मान नहीं लहता, उसके यदि पास महाधन वैभव है। उड़ती नभ में रज वायु चढ़ी, पर मान मिला उसको कब है!
Category: Ram Naresh Tripathi
हम लेंगे तेरा नाम / रामनरेश त्रिपाठी
हे कृष्ण! अनेक बहाने, हम लेंगे तेरा नाम॥ आँखों के पावन जल से। मुसुकाहट के कल कल से। सुख से आहों से दुख से। कर्मों से मन से मुख से। स्मृति से नीरव भाषा से। आशा से अभिलाषा से। जाने में या अनजाने– हम लेंगे तेरा नाम॥ हे! माधव जीवन मेरा। है क्रीडा-कानन तेरा। निज… Continue reading हम लेंगे तेरा नाम / रामनरेश त्रिपाठी
अस्तोदय की वीणा / रामनरेश त्रिपाठी
बाजे अस्तोदय की वीणा–क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में, कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥ ऐसी ही गति तेरी होगी, निश्चित है क्यों देरी… Continue reading अस्तोदय की वीणा / रामनरेश त्रिपाठी
स्वदेश-गीत / रामनरेश त्रिपाठी
सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा। छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥ जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में। हो रक्त बूँद भर भी जब तक हमारे तन में॥ छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा। छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥ कोई दलित न जग में हमको… Continue reading स्वदेश-गीत / रामनरेश त्रिपाठी
पुस्तक / रामनरेश त्रिपाठी
कोई मुझको भूमंडल का एक छत्र राजा कर दे। उत्तम भोजन, वस्त्र, बाग, वाहन, सेवक, सुंदर घर दे॥ पर मैं पुस्तक बिना न इनको किसी भाँति स्वीकार करूँ। पुस्तक पढ़ते हुए कुटी में निराहार ही क्यों न मरूँ॥ पुस्तक द्वारा नीति-निपुण विद्वानों से बतलाता हूँ। सत्पुरुषों के दिव्य गुणों से अपना हृदय सजाता हूँ॥ अगम… Continue reading पुस्तक / रामनरेश त्रिपाठी
काश्मीर / रामनरेश त्रिपाठी
(१) स्वर्ग से बड़ी है काश्मीर की बड़ाई जहाँ वास करती है बहू वेश धरके रमा। सरिता, पहाड़, झील झरनों बनों में जहाँ, इंद्रपुर से भी है हजार गुनी सुषमा॥ घास छीलती हैं जहाँ अप्सरा अनेक खड़ी धान कूटती हैं परी किन्नरी मनोरमा। सड़कें बुहारती घृताची रति रंभा जहाँ गोबर बटोरती हैं मेनका तिलोत्तमा॥ (२)… Continue reading काश्मीर / रामनरेश त्रिपाठी
नया नखशिख / रामनरेश त्रिपाठी
जिसके उरोज मिश्र देश के पिरामिड हों ध्रुव की निशा-सी केश-राशि सिर पर हो। ऊँट ऐसी गति हो, नितंब हों पहाड़ ऐसे चीन की दीवार मेखला सी जिस पर हो॥ साहब के दिल में दिमाग में दिखाव में भी हिंद की भलाई के ख्याल-सी कमर हो। ऐसी नायिकाओं का निवास, भगवान करे हिंदी के कबित्त-प्रेमियों… Continue reading नया नखशिख / रामनरेश त्रिपाठी
निशीथ-चिंता / रामनरेश त्रिपाठी
(१) कम करता ही जा रहा है आयु-पथ काल रात-दिन रूपी दो पदों से चल करके। मीन के समान हम सामने प्रवाह के चले ही चले जा रहे हैं नित्य बल करके॥ एक भी तो मन की उमंग नहीं परी हुई लिए कहाँ जा रही है आशा छल करके। निखर कढ़ेंगे क्या हमारे प्राण कंचन… Continue reading निशीथ-चिंता / रामनरेश त्रिपाठी
तेजस्वी बालक की एकांत-चिंता / रामनरेश त्रिपाठी
राम ऐसे न्यायी भाई लक्ष्मण भरत ऐसे कृष्ण के समान होंगे नीति-बल-धारी हम। धर्मपुत्र ऐसे सत्यवादी, वीर विक्रम-से चंद्रगुप्त ऐसे होंगे राज्य-अधिकारी हम॥ मारुती, परशुराम, देवव्रत, शंकर-से होंगे दयानंद के समान ब्रह्मचारी हम। राणा ऐसे सत्य-सिंधु, साहसी शिवाजी ऐसे गाँधी के समान होंगे लोक-शोक-हारी हम॥
मिठास / रामनरेश त्रिपाठी
धन की मिठास दान मान की मिठास यश ज्ञान की मिठास आत्मसुख का विकास है। धर्म की मिठास दया शिक्षा की मिठास कर्म प्रणय कलह की मिठास परिहास है॥ बुद्धि की मिठास सुकुमार कल्पना है और नीरुज शरीर की मिठास सुविलास है। चाहे वह नर का हो चाहे परमेश्वर का केवल विरह सच्चे प्रेम की… Continue reading मिठास / रामनरेश त्रिपाठी